________________
लब्धिसार
[ गाथा ६५
अर्थ-अनिवृत्तिकरण का काल सख्यातगुणा है इससे अपूर्वकरण का काल, गणगि का आयाम, उपशम सम्यक्त्वका काल, अन्तरायाम, जघन्य आबाधा और नष्ट पाबाधा ये सख्यातगुणित क्रम से है ।
विशेषार्थ-प्रथमस्थिति से एक समय कम दो प्रावलि अधिक उपशमावने (उपशामक) के काल से अनिवृत्तिकरण का काल सख्यातगुणा है, क्योंकि सर्वदा अनिवृत्तिकरणकाल के सख्यातवें भाग मे प्रथमस्थिति की उपलब्धि होती है । इससे अपूर्वकरण का काल सख्यातगुणा है, क्योकि सर्वदा अनिवृत्तिकरणकाल से अपूर्वकरणकाल सल्यातगुणा होता है। इससे गुणश्रेणि आयाम ( गुणश्रेणिनिक्षेप ) विशेष अधिक है, क्योकि अपूर्वकरण के प्रथमसमय से गुणश्रेणियायाम की उपलब्धि होती है जो अनिवृत्तिकरणकाल व अनिवृत्तिकरणकाल के सख्यातवे भाग सहित अपूर्वकरणकालप्रमाण है। इसलिये गुणश्रेणीअायाम, अपूर्वकरणकालसे अनिवृत्तिकरणकाल व अनिवृत्तिकरणकालके सख्यातवे भाग काल प्रमाण अधिक है । गुणश्रेणि आयाम से उपशान्ताद्धा अर्थात् उपशमसम्यक्त्वका काल सख्यातगुणा है, इससे संख्यातगुणा अंतगयाग है, क्योकि अन्तर का आयाम अर्थात् जितने निषेको के मिथ्यात्वद्रव्य का अभाव किया गया है उन निपेको का काल सख्यातगणा है, क्योकि अन्तरायाम के सख्यातवें भाग मे ही उपशमसम्यक्त्व के काल को गलाकर उससे आगे दर्शनमोहनीयकी तीनो प्रतियो मे से किसी एक का अपकर्षण कर उसका वेदन करता हुआ अन्तर को समाप्त करना है । अन्तरायाम से सख्यातगुणी जघन्य आवाधा है । अन्तिम समयवर्ती मियादृष्टि के जो नवकवन्य होता है, उसकी आबाधा जघन्य होती है, क्योकि अन्यत्र मिथ्यात्व की जघन्य आवाधा उपलब्ध नहीं होती, परन्तु शेष कर्मो का गुणसंक्रमण के अन्तिम समय मे जो नवक बन्ध होता है, उसकी आबाधा जघन्य होती है, क्योकि गुणसंक्रमण काल को उल्लघकर विध्यातसक्रम को प्राप्त हुए जीव के मन्दविशुद्धि वश स्थितिबन्ध वृद्धिगन होता है इसलिये वहा की याबाधा सवसे जघन्य नही हो सकती । जघन्य आवाधा में उत्कृष्ट याबाग सख्यातगुणी है। सर्व कर्मो की अपूर्वकरण के प्रथम समय मे स्थितिबन्ध सम्बन्धी आवाधा यहा पर उत्कृप्ट आवाधारूपसे विवक्षित है । जघन्य स्थितिबरगे यह स्थितिवन्ध सख्यातगुणा है इसलिए इसकी आबाधा भी सख्यातगुणी है' ।
१
. पु १२ प २६०-२६३ ।