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लब्धिसार
[ गाथा ७३
६० ] जाता है अर्थात् चयहोन क्रमसे दिया जाता है। उसका विधान इसप्रकार है-उदयावलि प्रमाण द्रव्य (३२००) को प्रावलिरूप गच्छ (८) से भाजित करनेपर मध्यम धन (३२००८=४००) प्राप्त होता है । एकएक अद्ध वान (८-१७) के आधे (६) को निषेक भागाहार (८४२-१६) में से घटानेपर जो शेष (१६-५ ५ ) का भाग मध्यमधनमे देनेपर चयका प्रमाण (४००६१५=३२) प्राप्त होता है। इस चय (३२) को निपेकभागाहार (१६) से गुणा करनेपर प्रथमनिषेक (३२४१६= ५१२) हो जाता है। इस प्रथमनिषक (५१२) से ऊपरके निषेक (४८०-४४८४१६-३८४-३५२-३२०-२८८) चय (३२) हीनक्रमसे हैं (५१२-३२-४८०, ४८०-३२-४४८ इत्यादि) । पुन' बहुभागप्रमाण (असख्यातलोक बहुभाग) द्रव्यको उदयावलिसे बाहर गुणश्रोणिमे देता है । इसमें से उदयावलिसे बाह्य अनन्तरस्थितिमे असख्यात समयप्रवद्धप्रमाण द्रव्यको निक्षिप्त करता है तथा उससे उपरिमस्थितिमे असख्यातगुणे द्रव्यको देता है। इसप्रकार अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे विशेप अधिककालमे गुणोरिणशीर्षके प्राप्त होनेतक उत्तरोत्तर असख्यातगुरिणत श्रेरिणरूपसे निक्षिप्त करता है । इसप्रकार पल्यके असंख्यातवेभागसे भाजित अपकर्षितद्रव्यके एकभाग द्रव्यका विभाजन हआ। शेष बहभागको गुणश्रेणिशीर्पसे उपरिमनिषेकोमे देता है । गुणश्रेणिशीर्षकी उपरिम अनन्तरस्थितिमे असंख्यातगुणा हीनद्रव्य देता है, उसके पश्चात् अतिस्थापनावलिको प्राप्त न होता हुआ उससे पूर्वकी अन्तिमस्थितिपर्यन्त क्रमसे विशेष (चय) हीन द्रव्यका निक्षेप होता है । गुणश्रेणिके प्रथमसमयकी एकशलाका, इससे असख्यातगुणी द्वितीयसमयवर्ती शलाका, इससे भी असख्यातगणी तृतीयसमयकी शलाका इसप्रकार गुणरिणके अन्ततक प्रतिसमय शलाका असंख्यातगुग्गित क्रम लिये हुए है। सर्वसमयसम्बन्धी शलाकाओंका जोड देकर जो प्राप्त हो उससे गुणधरणीके लिये अपकर्षितद्रव्यको भाजित करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसको अपनी-अपनी शलाकाअोसे गुणा करनेपर अपने-अपने निषेकके निक्षिप्तद्रव्यका प्रमाण प्राप्त हो जाता है । पुन. गुणश्रेणिसे उपरिमस्थितियोंके लिए अपकर्षितद्रव्यको कुछ अधिक डेढगुणहानिसे भाजित करनेपर गुणश्रेणिसे उपरिम प्रथमनिषेकमें निक्षिप्तद्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है जो गुणश्रेणिके अन्तिमनिपेकमें निक्षिप्त द्रव्यका
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ज प पु १२ १ २६५ ।