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लब्धिसार
गाथा ५० ]
[४१ (५४ की) जघन्यविशुद्धि अनन्तगुणी है, उससे चरमनिर्वर्गणाकाडकके प्रथमसमयकी (५४ की) उत्कृष्टविशुद्धि अनन्तगुणी है, उससे चरमनिर्वर्गणाकाडकके द्वितीय समय (५५ की) उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है, उससे तीसरे समयकी (५६ की) उत्कृष्टविशुद्धि अनन्तगुणी है, उससे चतुर्थसमयकी (५७ की) उत्कृष्टविशुद्धि अनन्तगुणी है । इसप्रकार यह क्रम अध प्रवृत्तकरणके अन्तिमसमयतक (अन्तिमनिर्वर्गणाकाडकके अन्तिमसमयतक) ले जाना चाहिए ।
ज ज ज ४० २० १२१
ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज. ज. ज.. १६३ २०६ २५० २५५ ३४१ २-८ ४३६ ४५ ५३५ ५८६ ६३८ ६८१
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१५ १ १६२ २०५ ४८ २४४ ३४० ३२७ ४३५ ४८४ ५३४ ५ ६७ ६० ७४४ ५. उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ । उपर्युक्तसंदृष्टिमे-१ से १६ तक की सख्या अध:प्रवृत्त करणके समयोकी सूचक है । एब अपूर्वकरण सम्बन्धी कथन करते हैपढमं व विदियकरणं पडिसमयमसंखलोगपरिणामा। अहियकमा हु विसेसे मुहत्तअंतो हु पडिभागो ॥५०॥
अर्थ-प्रथम अर्थात् अध प्रवृत्तकरण के समान द्वितीय अर्थात् अपूर्वकरण है। इसमे प्रतिसमय अधिक क्रमसहित असख्यातलोक परिणाम होते है । विशेष (चय) के लिए अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रतिभाव है।
विशेषार्थ-अध प्रवृत्तकरणमे प्रतिसमय असंख्यातलोक परिणाम होते हैं और वे चय अधिकक्रमसे होते है ऐसा कथन पहले गाथा ४२ में किया जा चुका है। यहां द्वितीय अपूर्वकरणसम्बन्धी कथन किया जावेगा। अपूर्वकरणसम्बन्धी तीन अनुयोगद्वार है-(१) प्ररुपणा (२) प्रमाण और (३) अल्पबहुत्व । अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें परिणामस्थान हैं, दूसरेसमयमे परिणामस्थान हैं । इसप्रकार अपूर्वकरणके अन्तर्मुहूर्त
१ ज.ध. पु १२ पृ. २४५ से २५१ तक । १. अपूर्वकरणद्धाए सव्वत्थ समए समए असखेज्जलोगा परिणामहाणाणि। (क पा.सुत्त पृ. ६३३)