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क्षपणासास
गाथा १५०-१५१]
[१३१ कृष्टि वेदककालके प्रथम समयमै संचलनचतुष्कका स्थिति सत्त्वं आठवर्षमात्र था । संख्यातहजार स्थितिकाण्ड कोंके द्वारा वह स्थितिसत्त्व क्रमसे घटकर इससमय अर्थात् क्रोधको प्रथमसंग्रहकष्टिको प्रथमस्थितिमें एकसमयधिक आवलिमात्रस्थिति शेष रह जानेपर अन्तमुहूर्त कम आठमाह अधिक छहवर्ष रह जाता है । तोनों कृष्टियोके वेदककालमें संज्वलनचतुष्कका स्थितिसत्त्व यदि चारवर्ष कम हो जाता है तो प्रथमसग्रहवेदककालमें कितना कम होगा? इसप्रकार राशि कविधिके द्वारा साधिक प्रथमसंग्रहकृष्टिके त्रिभागप्रमाण अर्थात् अन्तमुहूर्त अधिक चारमाहसहित एकवर्षकम हो जाता है । इसको पाठवर्षमें से कम करने पर (८ वर्ष - १ वर्ष ४ माह व अन्तर्मुहूर्त) अन्तर्मुहूर्तकम आठमास ६ वर्ष शेष स्थितिसत्त्व रह जाता है।
पूर्वसंधि अर्थात् क्रोधको प्रथमसंग्रहकृष्टिके वेदककालके प्रथमसमयमें तीन (ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तराय) घातियाकर्मों का स्थितिबन्ध संख्यातहजारवर्ष था जो यथाक्रम घटकर इससमय (क्रोधकी प्रथमसग्रहकृष्टिकी प्रथमस्थितिमें) समयाधिक आवलिकाल शेष रह जानेपर अन्तर्मुहूर्तकम १० वर्ष रह जाता है और स्थितिसत्त्व पूर्वसंधि संख्यातहजारवर्ष था, वह सख्यातहजार स्थितिकाण्ड कोके द्वारा घटकर सख्यातहजारगुणाहीन होनेसे तत्प्रायोग्य संख्यातवर्षप्रमाण रह जाता है । शेष (वेदनीय, नाम व. गोत्र) तोन अघातियाकर्मोका स्थितिबन्ध पूर्वसधिमें सख्यातहजारवर्षप्रमाण था वह सहस्रों स्थितिबन्धापसरणोंके द्वारा घटकर यथाक्रम घटते हुए सख्यातगुणाहीन होकर भी संख्यातहजारवर्षप्रमाण है और स्थितिसत्कर्म भी हजारो स्थितिकाण्डकघातोके द्वारा असंख्यातगुणाहीन होकर तत्प्रायोग्य असंख्यातवर्ष रह जाता है ।
से काले कोहस्स य विदियादो संगहादु पढमठिदी । कोहस्स विदियसंगहकि हिस्स य वेदगो होदि ॥१५०।।५४१॥ कोहस्स पढमसंगहकिहिस्सावलिपमाण पढमठिदी । दोसमऊणदुप्रावलिणवकं च वि चेउदे ताहे ॥१५१॥५४२॥
१. जयधवल मूल पृष्ठ २१८०.८१ ।। २. जय ध० मूल पृष्ठ २१८१ । ३. क. पा० सुत्त पृष्ठ ८५५-५६ सूत्र ११३६-४० व ४१ । ५० पु० ६ पृष्ठ ३८६ । जयपवन मूल
पृष्ठ २१०१।