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[ गाथा १७७
कृष्टियां विशेषअधिक हैं ( क्योकि उनका प्रमाण है | ) मानके संक्रमित होनेपर मायाकी प्रथमसग्रहकृष्टिकी अन्तरकृष्टियां विशेषअधिक हैं ( क्योकि उनका प्रमाण है 1 ) मायाके सक्रमित होनेपर लोभकी प्रथम सग्रह कृष्टिसम्बन्धी अन्तरकृष्टियां विशेष - अधिक हैं (क्योकि उनका प्रमाण ३३ है | ) प्रथम समय में की गई सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टियां विशेषअधिक हैं ( क्योकि उनका प्रमाण ३४ है ।) इसप्रकार चारकषाय और पांचवी सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टि अपने से अनन्तरपूर्व से सख्यातवें भागअधिक क्रमवाले हैं ।
क्षपणासार
विशेषार्थ - इस उपर्युक्त अल्पबहुत्वमें क्रोध आदि कषायोंकी प्रथमसंग्रहकृष्टि • | सम्वन्धी अन्तरकृष्टियोंकी हीनाधिकता बतलावेके लिए जो अङ्कसन्दृष्टि दी गई है, उसका स्पष्टीकरण यह है कि प्रदेशबन्धकी अपेक्षा आये हुए समयप्रबद्धके द्रव्यका जो पृथक्-पृथक् कर्मोंमे विभाग होता है उसके अनुसार मोहनीय कर्मके हिस्से मे जो द्रव्य आता है उसका दर्शनमोहनीय व चारित्रमोहनीय में विभाग होता है । चारित्रमोहनीयका द्रव्य अवान्तरप्रकृतियोमे विभाग होता है । प्रथमगुणस्थानके पश्चात् मोहनीय कर्मका सर्वद्रव्य चारित्रमोहनीयको मिलता है उसका आधाभाग ( ३ ) चोकषायको और आधाभाग (१) चारकषायोंको मिलता है । इसप्रकार संयमीकेमात्र संज्वलनका बन्ध होनेसे संज्वलनक्रोधको आधेका चौथाई भाग (३ x ३) अर्थात् मोहनीयकर्म का आठवां भाग मिलता है । पुनः यह आठवां भाग भी क्रोध की तीनों संग्रहकृष्टियों में विभक्त होता है, अतएव क्रोधकी प्रथससग्रहकृष्टिका द्रव्य मोहनीय कर्मके सकलद्रव्यकी अपेक्षा ( 12 X 3 ) चौवीसवांभाग है । नोकषायका सत्त्वरूपसे अवस्थित सर्वद्रव्य ( ३ ) भी क्रोधकी प्रथम - संग्रहकृष्टिमे पाया जाता है, उसके साथ इसका द्रव्य मिलनेपर (३+) भाग हो जाता है अतः क्रोधकी प्रथमसग्रहकृष्टिकी अन्तरकृष्टियोंका प्रमाण भी उतना ही ( 2 ) है । जो उपरिमपदकी अपेक्षा सबसे कम | भाग प्रमाणवाली क्रोध की प्रथम संग्रहकृष्टि जिससमय क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टिमे सक्रमित होती है उससमय द्वितीयसंग्रहकृष्टिकी अन्तरकृष्टियोका प्रमाण हो जाता है । पुनः क्रोधकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिका तृतीयसंग्रहकृष्टिमें संक्रमण हो जानेपर उसका प्रमाण (+) ू हो जाता है, पुनश्च क्रोधकी तृतीयसंग्रहकृष्टि जब मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें उसका प्रमाण (२+१%) हो जाता है । इसप्रकार प्रथमसंग्रहकृष्टिकी अपेक्षा मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिका प्रमाण ३ विशेषअधिक है, क्योकि इसमें और अधिक मिल गया है। मानकी तीनों संग्रहकृष्टियोका द्रव्य पूर्वोक्त
सक्रान्त होती है तब भाग प्रमाणवाली क्रोधकी