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विषय
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पष्ठ दर्शन मोह की क्षपणा करने वाले प्रस्थापक
देशसयम के कार्य विशेष का कथन निष्ठापक के सम्बन्ध में विशेष कथन
अथाप्रवृत्तसंयत के काल मे होने वाले कार्य अनन्तानुबन्धी की विसयोजना सम्बन्धी कथन १०६ विशेष का स्पष्टीकरण
१४७ विमयोजना के अनन्तर होने वाले कार्य १०६ प्रथाप्रवृत्तसयत के गुणश्रेणि द्रव्य की प्ररूपणा १४८ मिप्रतिक को चरमफालिका गुण श्रेणी मे निक्षिप्त अल्पवहुत्व की प्रतिज्ञा पूर्वक अल्पबहुत्व का कथन १४९ द्रव्य के क्रममहित प्रमाणादि का कथन
देशसंयम की जघन्य-उत्कृष्टलब्धि के साथ उसके अनुभाग अपवन का निर्देश
१२० अल्पबहुत्व का कथन सम्यक्त्व के पाठ वर्प प्रमाण स्थिति सत्त्व रहने जघन्य देशसयम के अविभागी प्रतिच्छेदो के प्रमाण पर होने वाले कार्य विशेप
का कथन एवं उक्त सयम के भेदो व उसमे अन्तर पाठ वर्ष की स्थिति के बाद होने वाले कार्य विशेष १२२ | का निर्देश अन्तिम काण्डक का विधान
१२६ देशसयम के जघन्य व उत्कृष्ट रूप से प्रतिपातादि साम्प्रतिक गुण श्रेणि के स्वरूप निर्देश पूर्वक
तीन भेदो मे कौन किसमे है चरमफालि का पतनकाल
१२९ देशसयम के उक्त प्रतिपातादि भेदो मे स्वामित्व कृतकृत्यवेदक मम्यक्त्व के प्रारम्भ समय मे
का निर्देश
१५५ अवस्था विशेप की प्ररूपणा
सकलचारित्र की प्ररूपणा का प्रारम्भ प्रघ.करण के प्रथम समय से कृतकृत्यवेदक के
वेदकसम्यक्त्व के योग्य मिथ्यात्वी आदि जीव के चरम समय पर्यन्त लेश्या परिवर्तन होने
सकलसंयम ग्रहण समय मे होने वाली विशेषता १५७ अथवा न होने सम्बन्धी कयन
१३२ देशसयम के समान सकलसयम में होने वाली कृतकृत्यवेदक काल मे पायी जाने वाली क्रिया
प्रक्रिया विशेष का निर्देश विशेष
१३३ जघन्यसयत के विशुद्धि सम्बन्धी अविभाग मल्पबहुत्व के कथन की प्रतिज्ञा
१३६ प्रतिच्छेदो की संख्या अल्पबदुत्व के ३३ स्थानो का कथन
१३६ सकलसयम सम्बन्धी प्रतिपातादि भेदो को बताते धायिक सम्यक्त्व के कारण गुण-भवसीमा
हुए प्रतिपाद भेद स्थानो का कथन क्षायिकन्नधित्व आदि का कथन
१४१ प्रतिपद्यमान स्थानो का कथन चारित्रलब्धि प्रधिकार
अनुभय स्थानो का कथन
१६२ देशायम और सकलसयमलब्धि की प्ररूपणा
| सूक्ष्म साम्पराय व यथाख्यातसयम स्थान मिव्याप्ति के देगसयम की प्राप्ति के
प्रतिपातादि स्थानो का विशेष कथन पर पायी जाने वाली सामग्री का कथन
१६३ १४३ उपप्रम सम्परत्व के माय देशसयम को ग्रहण करने
चारित्रमोहनीय उपशमनाधिकारपार गया कार्य
१४४ उपशान्त कषाय वीतरागियो को नमन करके मिरवान्टिीव वेदक सम्यक्त्व के साथ देश- उपशमचान्त्रि का विधान प्ररूपण पानिवग्रहरा के समय होने वाली विशेषता -मयमरी प्राप्ति के समय से गण श्रेणिरूप'
दर्शनमोह के उपशमका निर्देश, उपशमणि पर मावि
प्रारोहण की योग्यता का निर्देश तथा दर्शन• १४६ / मोहोपशम मे गुणसंक्रमण के प्रभाव का प्रतिपादन १७०
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