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लब्धि
घसार
"सिद्धान्तबोधिनी हिन्दोटीका"
"मंगलाचरणम्" सिद्धे जिणिंदचंदे आयरिय उवज्झाय साहुगणे । वंदिय सम्मदसण-चरित्तलद्धिं परूवेमो ॥१॥
अर्थ-मैं नेमिचन्द्रप्राचार्य सिद्ध-अरिहन्त-प्राचार्य-उपाध्याय तथा सर्वसाधुनो को नमस्कार करके सम्यग्दर्शन व सम्यक्चारित्रकी प्राप्ति (के उपाय) को कहू गा ।
विशेषार्थ-चन्द्रमाके समान सम्पूर्णलोकके प्रकाशक अरहन्त भगवान्को, जिनके सभी कार्य सिद्ध होनेसे जो कृतकृत्य हो गये है अर्थात् जिन्होने सम्पूर्णकर्मोका क्षय कर दिया है ऐसे सिद्ध भगवान्को, तेरहप्रकारके चारित्रमे जो स्वय प्रवृत्ति करते है तथा अन्यको प्रवृत्ति कराते है ऐसे आचार्यको, जिनवाणीके पठन-पाठनमे रत उपाध्यायो को और रत्नत्रयके साधक साधुगणोको अर्थात् इन पचपरमेष्ठियोको नमस्कार करके श्री नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तीने लब्धिसारग्रन्थको कहनेकी प्रतिज्ञा की है। इस लब्धिसार ग्रन्थमे सम्यग्दर्शन व सम्यक्चारित्र की प्राप्तिके उपायका कथन किया जावेगा।
प्रथमोपशमसम्यक्त्वकी प्राप्तिके योग्य जीवको बताते हैं'चदुगदिमिच्छो संगणी पुण्णो गब्भज विसुद्ध सागारो।
पदमुवसमं स गिबहदि पंचमवरल द्धिचरिमम्हि ।।२॥ १. दृश्यता षट्खण्डागम, जीवस्थान चूलिका (अष्टमी) सूत्र ४ एव किंचित् पाठान्तरेण जीवकाडेऽपि
आगता गाथेयं । (गो. जी. गा. ६५२)