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क्षपणासार
[ गाथा २१५
समयमें लोभोदयोक्षपक भी लोभका क्षय करता है यह सब सन्निकर्ष प्ररूपणा पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपककी की गई है' ।
पुरिसोद
चडिदस्सित्थी खवणउत्ति पदंमठिदी ।
इत्थिस्स सत्तकम्मं अवगद वेदो समं विणा सेदि ॥ २१५ ॥ ६०६ ।।
प्रर्थ- पुरुषवेदोदयसे श्रेणीपर चढ़ा हुआ जिस कालतक स्त्रीवेदका क्षय करता है वहांतक स्त्रीवेदके उदयसे श्रेणीपर चढ़ े हुए जीवके स्त्रीवेदकी प्रथमस्थिति है । अपगतवेदी होनेपर सातकर्मों (सात नोकषाय) का एकसाथ क्षय करता है |
विशेषार्थ - जबतक अन्तर नही करता तबतक स्त्रीवेदोदय से श्रेणि चढ़ े हुए ओर पुरुषवेदोदयसे चढ़ े हुए जीवमें कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि अन्तरकरणसे पूर्व दोनो क्षपकों की क्रियाविशेषमें कोई भिन्नता नही है । अन्तर करनेपर स्त्रीवेदोदयवालेके स्त्रीवेदकी प्रथमस्थिति होती है । पुरुषवेदोदयी क्षपकके नपुंसकवेद व स्त्रीवेदके क्षयकालको मिलाने पर जितना काल होता है उतनाकाल स्त्रीवेदोदयवाले क्षपककी प्रथमस्थितिका है । नपुंसकवेदके क्षयसम्बन्धी प्ररूपणा में कोई अन्तर नही है । नपुंसक वेदका क्षय करनेके पश्चात् स्त्रीवेदका क्षय करता है । पुरुषवेदोदयसे उपस्थित क्षपक के जितना बड़ा काल स्त्रीवेदकी क्षपणाका है उतना ही बड़ा काल स्त्रीवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेदक्षपरणाका है । स्त्रीवेदकी प्रथम स्थिति क्षीण हो जानेपर अपगतवेदी हो जाता है तब श्रपगतवेदभाग में पुरुषवेद और हास्यादि छह नोकषायका क्षय करता है, किन्तु पुरुषवेदोदयसे श्रेणीपर चढा हुआ क्षपक सवेदभागमे हास्यादि छह नोकषाय और पुरुषवेदके पुरातन सत्कर्मका क्षय करता है । स्त्रीवेदोदयसे श्रेणी चढ़े हुए क्षपकके पुरुषवेदके पुरातनसत्कर्मका क्षय हो जानेपर भी एकसमयकम दोआवलिप्रमाण नवकसमयप्रबद्ध शेष रह जाता है, किन्तु स्त्रीवेदोदयसे श्रेणी चढ़ क्षपकके वह नवकसमयप्रबंद्ध नहीं रहता, क्योकि अवेदभावसे वर्तमानके पुरुषवेदका बन्ध नही होता । इस उपर्युक्त विभिन्नता के अतिरिक्त अन्य कोई अन्तर पुरुषवेदोदयीक्षपक व स्त्रीवेदोदयी - क्षपकमे नही है ।
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१. जयघवल मूल पृष्ठ २२५५ से २२६० तक |
२. क० पा० सुत्त पृष्ठ ८९३ सूत्र १५३५ से १५४३ । घ० पु० ६ पृष्ठ ४०१ ।
३. जयघवल मूल पृष्ठ २२६० से २२६२ तक