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क्षपणासार
[ गाथा २२६ सर्वद्रव्य और उनकी पर्यायोंको विषय करनेवाला केवलज्ञान है, इससे यह बतलाया गया है कि केवलज्ञान परमोत्कृष्टअनन्तपरिणामवाला है । प्रमेय आनन्त्य (अविनश्वर) हैं अतः उनके जाननेवाली ज्ञानशक्तिके भी आनन्त्यपना सिद्ध हो जाता है। प्रतिषेधका अभाव होनेसे केवलज्ञान उपचारमात्रसे आनन्त्य नहीं है, किन्तु परमार्थसे आनन्त्य है । समस्त ज्ञेयराशिसे केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं, यह आगमसे भलेप्रकार जाना जाता है । कहा भी है कि "जो नाशवान नहीं है वह द्रव्य है अत. इसके आनन्त्य अनुपचरित है" ऐसा निश्चय करना चाहिए । कहा है--
केवलज्ञान क्षायिक है, एक है, अनन्त है, भूत-भविष्यत और वर्तमान, इन तीनों कालोंमें सर्व अर्थ (ज्ञेयो) को युगपत् जानता है, अतिशयातीत है, अन्त्यातीत है, अच्युत है, व्यवधानसे रहित है'।
___ इसीप्रकार केवलदर्शनका व्याख्यान करना चाहिए । दर्शनावरणका अत्यन्तरूपसे पूर्ण क्षय होनेपर प्रगट होनेवाला दर्शनोपयोग अशेष (समस्त) पदार्थोंका अवलोकन जिसका स्वभाव है, उसको भी आनन्त्य विशेषण प्राप्त है और वह केवलदर्शन कहा जाता है । प्रतिबन्धकी अनुपलब्धि मात्रसे ही उसके आनन्त्य नही मानना चाहिए, किन्तु अविनाशी होनेसे आनन्त्य है।
शङ्का--सकल कैवल्य अवस्थामे ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोगमें कोई भेद नहीं है, क्योकि अशेष पदार्थों को साक्षात् करना दोनोका स्वभाव होनेके कारण दोनो. का विषय एक होनेसे दोनोके विषयमे कोई भेद नही है इसलिए एकसे ही समस्त पदार्थोका जानना हो जावेगा दूसरा व्यर्थ है फिर दोनों उपयोगोंका कथन क्यों किया गया ?
समाधान-असंकीर्णस्वरूपसे केवलज्ञान और केवलदर्शन इन दोनोंका विषय विभाग अर्थात् विषयभेद असकृत देखा जाता है अतः कैवल्यअवस्थामें - सकल विमल केवलज्ञानके समान अकलक केवलदर्शनका भी अस्तित्व है यह सिद्ध हो जाता है, अन्यथा आगविरोधरूप दोषका परिहार नही हो सकेगा।
१. क्षायिकमेकमनन्त त्रिकालसर्वार्थ युगपदवभासि । निरतिशयमन्त्यमच्युतमव्यवधानं च केवल
ज्ञानम् ।।" (जयधवल मूल पृष्ठ २२६६)