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गाथा ८-६] क्षपणासारचूलिका
[२३५ 'बंधेण होइ उदओ अहिओ उदएण संकमो अहिओ। गुणसेढि असंखेज्जा य पदेसग्गेण बोद्धव्वा ॥८॥ उदश्रोय अणंतगुणो संपहि बंधेण होइ अणुभागो । से काले उदयादो संपहि बंधो अणंतगुणो ॥६॥
अर्थ-बन्धसे अधिक उदय होता है और उदयसे अधिक संक्रमण होता है। इसप्रकार अनुभागके विषय में अनन्तगुणित गुणश्रेणि जानना चाहिए। बंधसे अधिक उदय होता है और उदयसे अधिक संक्रमण होता है । इसप्रकार प्रदेशके विषयमें असंख्यातगुणश्रेणी जानना चाहिए । अनुभागविषयक साम्प्रतिकबन्ध अनन्तगुणा होता है ।
विशेषार्थ-गाथा नं. ७ में अनुभागकी अपेक्षा, बन्ध, उदय व संक्रमणका अल्पबहुत्व कहा गया है। अनुभागको अपेक्षा बन्ध अल्प है, क्योंकि यहांपर तत्काल होनेवाले बन्धको विवक्षा है । बन्धसे उदय अनन्तगुणा है, क्योंकि वह चिरन्तन सत्त्वके अनुभागरूप है । उदयसे सक्रमण अनन्तगुणा है । इसका कारण यह है कि उदयमें तो अनुभागसत्त्व अनन्तगुणाहीन होकर प्राता है. किन्तु परप्रकृतिरूप संक्रमण तो चिरन्तनसत्त्वका तदवस्थारूपसे होता है । यह अल्पबहुत्व घातियाकर्मों की अपेक्षासे कहा गया है ।
गाथा नं. ८ में प्रदेश विषयक अल्पबहुत्व बतलाया गया है । अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके उक्त स्थलपर पुरुषवेद आदि जिस किसी भी कर्मका नवकबन्ध समयप्रबद्ध प्रमाण होता है यह प्रदेशोंको अपेक्षा उदयादिसे अल्प है। बन्धसे प्रदेशोदय असख्यातगुणा है, क्योंकि आयुकर्मके अतिरिक्त अन्यकर्मोंका उदय गुणश्रेणी गोपुच्छाके माहात्म्यसे समयप्रबद्धसे असख्यातगुणा हो जाता है। उदयरूप प्रदेशोंसे संक्रमणरूप प्रदेश भी असंख्यातगुणे होते हैं । इसका कारण यह है कि जिनकर्मोका गुणसंक्रमण होता है उन कर्मो का गुणसंक्रमण द्रव्य और जिनका अधःप्रवृत्त संक्रमण होता है उनका अधःप्रवृत्तसंक्रमण द्रव्य असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होनेसे उदयकी अपेक्षा असंख्यातगुणा हो जाता है।
१. जयधवल मूल पृष्ठ २२७४ व ध० पु० ६ पृष्ठ ३६२ गा. २७, क. पा. सुत्त पृष्ठ ७७० गा. १४५ । २ क० पा• सुत्त पृष्ठ ७६६ । ३. क. पा० सुत्त पृष्ठ ७६६ ।