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अशुद्ध सक्रमण होता है । इसप्रकार
सक्रमण होता है। ऐसे ही द्वितीयकाण्डक का सक्रमण होता है । ऐसे क्रम से पृथक्त्व स्थितिकाण्डक के द्वारा ८ कपाय के द्रव्य का पर प्रकृतिरूप सक्रमण होता है। इसप्रकार प्रथम काण्डकघात होता है । ऐसे चक्खु
प्रथमकाण्डकघात होकर
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चक्खू
किन्तु स्थितिबन्ध पल्योपम के असख्यातवे भाग प्रमाण ही होता है । इसप्रकार अनुभाग स्तोक होने से गो कसायारण उपरितनवर्ती अपकपित द्रव्य को निषिद्ध है। परप्रकृति समस्थितिसक्रम प्रथमस्थिति मे अपकर्पण और
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असख्यातवें भाग को इति पाठो। "पाउत्तकरण" इति पाठो सच उपयुक्तो प्रतिभाति । (६) नपु सकवेदता जय हो जाता है। इति पाठो प्रतिभाति । भेवरूप लिये स्थिति होता है।
अनुभाग स्तोक व अधिक होने से गोकसायारण उपरितन उत्कर्पित द्रव्य को निषिद्ध है। परप्रकृतिसक्रम प्रथमस्थिति मे अपकर्पण सक्रमण द्वारा देता है, उदय को प्राप्त सज्वलनो की प्रथम स्थिति मे अपकर्पण और सख्यातवें भाग को इति पाठः। "पाउत्तकरण" इति पाठ., सच उपयुक्तः प्रतिभाति । नपु सकवेदका क्षय हो जाता है। इति पाठः प्रतिभाति । भेदरूप लिये अन्य स्थिति होता है ।१ इसी क्रम से अर्थात् प्रतिसमय अनन्त गुरिणत हीन क्रम से अप्रशस्त प्रकृतियो के अनुभाग का बन्ध भी होता है। वही वहीं विवक्षित समय से करनी आढत्ते
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वही वही विवक्षित समय मे करना पाडत्ते