________________
क्षपरणासार
[ गाथा २४०.४३ मायानगुणीहीन उच्छ्वासशक्तिका ग्रहण होता है । बादर व सूक्ष्ममनोयोगादि प्रत्येकके
मरने में लन्तमहतकाल लगता है । योगनिरोध करनेवाले केवली सूक्ष्मकाययोगसारा मन, वचन व उच्छ्वासकी सूक्ष्मशक्तिको भी यथोक्तक्रमसे निरोध (नाश) को माययोगका निरोध करने के लिए इन करणोंको अबुद्धिपूर्वक करते हैं ।
सुहमस्स य पढमादो मुहुत्तअंतोत्ति कुणदि हु अपुवे । पुव्वगफडगहेट्टा सेढिस्ल असंखभागमिदो ॥२४०॥६३१॥ पुवादिवग्गणाणं जीवपदेसा विभागपिंडादो। होदि असंखं भागं अपुव्वपढमम्हि ताण दुगं ॥२४१॥६३२॥ प्रोक्कदि पडिसमयं जीवपदेसे असंखगुणियकमे । कुणदि अपुवफट्टयं तन्गुणहीणक्कमेणेव ॥२४२॥६३३॥ सेढिपदस्स असंखं भागं पुव्वाण फड्डयाणं वा। सव्वे होंति अपुवा हु फड्ढया जोगपडिवद्धा ॥२४३।।कुलय।।६३४॥
अर्थ-सूक्ष्मयोग होनेके प्रथमसमयसे अन्तमुहूर्त व्यतीतकर पूर्वस्पर्धकोके नोचे जगच्छेणीके असंख्यातवेभागप्रमाण अपूर्वस्पर्धक करते हैं। पूर्वस्पर्धकसम्बन्धी जीवप्रदेशके असख्यातवेभागप्रमाण जीवप्रदेशोद्वारा प्रथमसमयमें अपूर्वस्पर्धकोंकी रचना होती है जिनमे पूर्वस्पर्षककी आदिवर्गणाके असंख्यातवेंभागप्रमाण अविभागप्रतिच्छेद होते हैं । प्रतिसमय असंख्यात-असंख्यातगुणे क्रमसे जीवप्रदेशोका अपकर्षण करते हैं, किन्तु नवीन अपूर्वस्पर्धक असंख्यातगुणेहीन क्रमसे रचे जाते हैं । योगसम्बन्धी सर्व अपूर्वस्पर्धक जगच्छे णोके प्रथमवर्गमूलके असंख्यातवेभागप्रमाण अथवा सर्व पूर्वस्पर्धकोके सत्यातवेंभागप्रमाण होते हैं ।
विशेषार्य-सूक्ष्मनिगोदियाजीवके जघन्ययोगसे असंख्यातगुणीहीन सूक्ष्मकायपरिस्पन्दनशक्तिरूप परिणपन होनेपर भी पूर्वस्पर्धक ही हैं, उससे अन्तर्मुहूर्त जाकर प्रथमत्तमयमे पूर्वस्पर्षकोके नीचे अपूर्वस्पर्धकोको रचना होती है जिनकी सख्या पूर्व
१. जपरवल मूल पृष्ठ २२८३ से २२८५।