________________
गाथा २३६ ] क्षपणासार
[ २०१ और अप्रशस्तप्रकृतियोंके शेष अनुभागके अनन्तबहुभागका घात कपाटसमुद्घात में होता है। यहां गुणश्रेणीको प्ररुपणा आवजितकरण में कथित गुणश्रेणिप्ररुपणाके समान ही है ।
केवलीसमुद्घातके तृतीयसमयमें मंथ (प्रतर) समुद्धात होता है, जिसके द्वारा कर्मोंका मथन किया जावे वह मन्थ है । अघातियाकर्मोकी स्थिति व अनुभागका हनन होता है और प्रात्मप्रदेशोंकी अवस्थाविशेष (प्रतररूपसे फैल जाते हैं) को प्रतरसनावाला मन्थ कहा गया है। इस अवस्थाविशेषमें वर्तन करनेवाले केवलीके जीवप्रदेश चारों ओर प्रतराकारसे फैल जाते हैं, वातवलयोंके अतिरिक्त शेष समस्त लोकाकाशके प्रदेशोंमें व्याप्त हो जाते हैं, क्योंकि इस अवस्था में वातवलयोमें केवलीके जीवप्रदेशोके संचारका अभावरूप स्वभाव है, जीवप्रदेशोंकी ऐसी अवस्थाको प्रतरसंज्ञा आगमरुढिके बलसे जानना । इस अवस्थामें केवली कार्मणकाययोगी व अनाहारक हो जाते हैं । मूलशरीरके अवलम्बनसे उत्पन्न जीवप्रदेशोका परिस्पन्दन असम्भव है क्योकि शरीरके तत्प्रायोग्य नोकर्म पुद्गलपिण्डके ग्रहणका अभाव है। स्थितिसत्कर्मके असख्यात बहुभाग और अप्रशस्त प्रकृतियों के अनुभागसत्कर्मके अनन्तबहुभागका पूर्वके समान हो घात होता है और उसीप्रकार प्रदेश निर्जरा भी होती है। स्वस्थानके वलीको गुणश्रेणिनिर्जरासे असंख्यातगुणी गुणश्रेणीनिर्जरा आवर्जितकरण आदि अवस्थाओंमें होती है।
___ तदनन्तर चतुर्थसमयमें लोकपूरणसमुदुधात होता है। वातवलयसे अविरुद्ध लोकाकाशके प्रदेशोंमें जीवप्रदेश प्रवेशकर जानेपर जीवप्रदेश व लोकाकाशके प्रदेशों में समानता होनेसे सम्पूर्ण लोकाकाशमें जीवप्रदेश निरन्तर (अन्तररहित) व्याप्त हो जाते हैं इसलिए 'लोकपूरण' संज्ञावाला यह चतुर्थ केवलीसमुद्घात है। यहांपर भी कार्मणकाययोग व अनाहारक अवस्था होती है, क्योंकि शरीरनिर्वृत्तिके लिए औदारिकरूप नो. कर्मवर्गणाओंका निरोध देखा जाता है । लोकपूरणसमुदुधातमें वर्तन करनेवाले केवलोके लोकप्रमाण समस्त जीवप्रदेशों में वृद्धि-हानिके बिना योग-अविभागप्रतिच्छेद सदृश होकर परिणमन करते हैं इसलिए सर्वजीवप्रदेशोमे एक योगवर्गणा हो जाती है अर्थात् सर्वजीव प्रदेशों में समान योग होता है। सर्वजीवप्रदेशों में सदृशयोगशक्तिके अतिरिक्त विसदृशयोग शक्तिको अनुपलब्धि है । सूक्ष्म निगोदिया जीवके जघन्ययोगसे असख्यातगुणा तत्प्रायोग्य मध्यसयोगस्वरूप वह सदृशयोग परिणाम होता है। लोकपूरण समुद्धातमें असंख्यात बहुभागप्रमाण स्थितिका घात हो जानेपर शेषस्थिति अन्तर्मुहूर्तप्रमाण रह