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क्षपणासाय
पापा १९५]
[ १६५ विशेषार्थ--यह कथन द्वितीयादि समयों की अपेक्षा है, क्योंकि प्रथमसमयका कथन गाथा १९२ में किया जा चुका है। उदयस्थितिसे लेकर मुणश्रेणियायाममें असंख्यातगुणित क्रमसे प्रदेशाग्न दिया जाता है और गुणश्रेणीशीर्षसे असंख्यातगुणा प्रदेशाग्र अन्तरायामकी प्रथमस्थितिमें दिया जाता है । इस कथनको स्मरण करानेके लिए गाथामें कहा गया है कि अन्तरायामको प्रथमस्थितितक असंख्यातगुरिणतक्रमसे द्रव्य दिया जाता है, उससे अनन्तरवर्ती स्थितिसे लेकर अन्तरायामकी अन्तिमस्थितितक एक गोपुच्छविशेषसे होन द्रव्य दिया जाता है। इसप्रकारसे अन्तरायामस्थितियों में प्रदेश विन्यास होता है। अन्तरायामको चरमस्थितिके अनन्तरवर्तीस्थितिमें (जो कि पूर्व में की गई द्वितीयस्थिति में आदिस्थिति है) संख्यातगुणाहीन प्रदेशान दिया जाता है अर्थात् जहांपर अन्तरायामकी अन्तिमस्थितिकी और द्वितीयस्थितिसम्बन्धी आदिस्थितिको सधि होती है वहां संख्यातगुणाहीन द्रव्य दिया जाता है । अन्तरायामको स्थितियोंमें अपकर्षितद्रव्यके असंख्यातबहुभागका संख्यातवांभाग या संख्यातबहुभाग दिया जावे, किन्तु द्वितीयस्थितिसम्बन्धी स्थितियों में से आदिस्थितिम संख्यातगुणाहीन द्रव्य दिया जाता है, क्योंकि अन्तरायामस्थितियोंकी अपेक्षा द्वितीयस्थितिकी स्थितियां असंख्यातगुणी हैं । उसके अनन्तरवर्तीस्थितियोमें गोपुच्छविशेषहीन द्रव्य अपनी अतिस्थापनावलीतक दिया जाता है। जितना द्रव्य सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानके प्रथमसमयमै अपकर्षित किया गया था उससे असंख्यातगुणे द्रव्यका द्वितीयसमयमे अपकर्षण होता है उसमें से उदयस्थितिमे स्तोक द्रव्य तथा द्वितीयस्थितिमें उससे (उदयस्थितिसे) असंख्यात. गुणा द्रव्य दिया जाता है । प्रथमसमयके गुणश्रेणिशीर्षसे ऊपर अनन्तरस्थितितक इसी असंख्यातगुणे क्रमसे द्रव्य दिया जाता है, क्योंकि यहांपर मोहनीयकर्मका अवस्थितगुणश्रेणिआयाम है । द्वितीयसमयके गुणश्रेणीशीर्षसे अनन्तर उपरिम एकस्थितिमे भी असंख्यातगुणा द्रव्य दिया जाता है, उसके पश्चात् अन्तरायामकी चरमस्थितितक विशेषहीन-विशेषहीन द्रव्य दिया जाता है । इसके अनन्तर द्वितीयस्थितिकी स्थितियोंमे से प्रथमस्थितिमें संख्यातगुणाहीन प्रदेशपिण्ड दिया जाता है, उसके आगे अनन्तरवर्तीस्थितिसे लेकर जिसस्थितिमेंसे प्रदेशाग्र अपकर्षण किया गया था उससे एक आवलि नीचे तक असंख्यातगुणेहीन क्रमसे द्रव्य दिया जाता है । इसीप्रकार तृतीयादि समयोंमें प्रदेशाग्रका अपकर्षण व नि:सिंचन होता है। द्वितीयस्थितिके समस्तद्रव्यका संख्यातवांभाग प्रथमस्थितिकाण्डककी चरमफालिके लिए अपकर्षित होता है जो पूर्वोक्त विधिके अनुसार