________________
क्षपणासार
गाथा २११ ]
[ १७७ अतः उपरिम अनन्तर स्थितिमें गुणश्रेणीशीर्षसे असंख्यातगुणे प्रदेशाग्न हैं, उसके ऊपर चरमस्थितिसे आवलिपूर्वतक विशेषहीन-विशेषहीन प्रदेशाग्र दिये जाते हैं। इसप्रकार द्वितीयादि समयोंमे भी अवस्थितगुणश्रेणी प्ररुपणा जानकर करना चाहिए ।
बहुठिदिखंडे तीदे संखा भागा गदा तदद्धाए । चरिमं खंडं गिराह दि लोभं वा तत्थ दिज्जादि ।।२११॥६०२॥
अर्थ-पूर्वोक्तकमसे बहुत (सख्यातहजार) स्थितिकाण्डक व्यतीत हो जानेपर क्षीणकषायकालके संख्यात बहुभाग चले जानेके पश्चात् जब एक भाग अवशेष रहा तब तीन घातियाकर्मोके चरमकाण्डकको ग्रहण करता है। वहां देयआदि द्रव्यका विधान सूक्ष्मलोभके समान जानना ।
विशेषार्थ-यहां क्षीणकषायगुणस्थानके अवशिष्टकालके बिना तीनघातिया कर्मोकी शेष बची सर्वस्थितिको चरमकाण्डकके द्वारा घातता है । क्षीणकषायगुणस्थानके ऊपर और क्षीणकषायसम्बन्धी गुणश्रेणिशीर्षके नीचे गुणश्रेणिके अधस्तनवर्ती क्षीणकषायकालके संख्यातवेंभागप्रमाण निषेक और गुणश्रेणिशीर्षके ऊपर संख्यातगुणे उपरितन निषेकको ग्रहणकरके अन्तिमकाण्डकद्वारा लांछित (खंडित) करता है ऐसा जानना । उसके (अन्तिमकाण्डक) द्रव्य देनेका विधान जैसे लोभके अन्तिमकाण्डकमें कहा था उसीप्रकार जानना । इस प्रकार अन्तिमकाण्डककी प्रथमादि फालियोंका घातकरके पश्चात् किंचित्ऊन द्वयर्धगुणहानि (डेढगुणहानि) गुणित समयप्रबद्धप्रमाण चरमफालिके द्रव्यको उदयनिषेकसे लेकर क्षीणकषायके द्विचरमसमयपर्यन्त असंख्यातगुणे क्रमसे और द्विचरमसमयमे दिये गए द्रव्यसे असंख्यातपल्यवर्गमूलगुणा द्रव्य क्षीणकषायके चरमसमयसम्बन्धी निषेकमे देता है। . '
जबतक एकसमयअधिक आवलिकाल शेष रहता है तबतक तीनघातिया कर्मोंकी उदीरणा होती है उसके पश्चात उदयावलि शेष रह जानेपर उदीरणा नहीं होती। प्रतिसमय एक-एक निषेकका उदय होकर निर्जरा होती है । क्षोणकषायकाल में प्रथमशुक्लध्यान और पश्चात् द्वितीय शुक्लध्यान होता है, क्योंकि सुविशुद्ध शुक्लध्यानपरिणामके बिना कर्म निमूल नहीं होते हैं । १. जयधवल मूल पृष्ठ २२६५ । २. जयधवल मूल पृष्ठ २२६५ ।