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क्षपणासार
गाथा १७६-७७]
(१५१ अर्थ-उन सूक्ष्मकृष्टियोंका अवस्थान लोभकी तृतीयसंग्रहकृष्टिके नीचे है तथा वे सूक्ष्मकृष्टियां क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टिके समान होती हैं ।
विशेषार्थ- सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टियोंका अवस्थान लोभकी तृतीयसंग्रहकृष्टि चीचे है, क्योंकि अनन्तगुणितहीन अनुभागसे परिणमित की गई हैं। ये सूक्ष्मकृष्टियां संज्वलनक्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टिके समान ही हैं। जैसे क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टि शेष संग्रहकृष्टियोंके आयामको देखते हुए अपने आयामसे द्रव्यमाहात्म्यकी अपेक्षा असख्यातगुणी थी वैसे ही ये सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टियां भी क्रोधकी प्रथमसग्रहकष्टि के बिना शेषसंग्रहकृष्टियोंके कृष्टिकरणकालमे समुपलब्ध आयामसे संख्यातगुणे आयामवाली जानना चाहिए, क्योकि मोहनीयकर्मका सर्वद्रव्य इसके आधाररूपसे ही परिणमन करनेवाला है अथवा जैसे क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टि अपूर्वस्पर्धकोंके अधस्तनभागमे अनन्तगुणीहीन की गई थी वैसे ही यह सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टि भी लोभकी तृतीयबादरकष्टिके अधस्तनभागमें अनन्तगुणीहीन की जाती है अथवा जिसप्रकार क्रोधको प्रथमसंग्रहकृष्टि जघन्यकृष्टिसे लगाकर उत्कृष्टकृष्टिपर्यन्त अनन्तगुणी होती गई थी, उसीप्रकार यह सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टि भी अपनी जघन्यकृष्टि से लेकर उत्कृष्ट कृष्टिपर्यन्त अनन्तगुणी होती जाती है । इसीलिए किसी भी कृष्टिके साथ सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टिकी समानता त बताकर क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टिके साथ बतलाई गई है'।
'कोहस्स पढमकिट्टी कोहे छुद्धे दु माणपढमं च । माणे छुद्ध मायापडमं मायाए संछुद्ध ॥१७६॥५६७॥ लोहस्स पढमकिट्टी आदिमसमयकदसुहुमकिट्टीय। अहियकमा पंचपदा सगसंखेज्जदिमभागेण ॥१७७॥जुम्म।।५६८॥
अर्थ-क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टिकी अन्तरकृष्टियां सबसे कम हैं (क्योंकि उनके आयामका प्रमाण १३.है ।) क्रोधके संक्रमित होनेपर अर्थात् क्रोधकी तृतीयसंग्रहकृष्टिको मानकी प्रथमसग्रहंकृष्टि में प्रक्षिप्त करनेपर मावकी प्रथमसग्रहकृष्टिकी अन्तर
१. जयधवल मूल पृष्ठ २१६६ । २. क. पा० सुत्त पृष्ठ ८६३ सूत्र १२४८ से १२५३ । धवल पु० ६ पृष्ठ ३६७-६८।