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[ गाथा १६१
अर्थ-अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके चरमसमय में स्थितिसत्त्व क्रमसे- लोभका अन्तर्मुहूर्त, तीन घातिया कर्मोका यथायोग्य संख्यातहजारवर्ष और तीन अघातिया कर्मोका यथायोग्य असख्यातवर्षप्रमाण है' ।
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क्षपणासार
सूक्ष्मसाम्परायका कथन -
से काले सुमगुणं पडिवज्जदि सुहुम किट्टि ठिदिखंडं ।
आणायदि तदव्वं उक्कट्टिय कुणदि गुणसेदि ॥ १६१ ॥ ५८२ ॥ -
अर्थ - - बादर कृष्टिवे द्यमानकाल समाप्त होनेके अनन्तर समय में सूक्ष्मसाम्पराय-गुणस्थानको प्राप्त होता है वहां पर सूक्ष्मकृष्टियोंका स्थितिकाण्डकघात करता है और लोभके सूक्ष्मकृष्टिद्रव्यका अपकर्षणकरके गुणश्रेणिरूप से निक्षेप करता है ।
विशेषार्थ -- बादरकृष्टिवेदनने अन्तिम समय से अनंतरवर्ती समय मे सूक्ष्मकृष्टियोंका अपकर्षण करके वेदन करनेवाला उसी समय सूक्ष्मसाम्परायिक भावो से परिणत होकर प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानवाला हो जाता है । सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान के - उसी प्रथम समय मे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितिके संख्यातवें भागप्रमाणस्थितिकाण्डकायाम होता है | मोहनीय कर्म के सूक्ष्म कृष्टिअनुगत अनुभागका पूर्ववत् अपवर्तनाघात करता है । ज्ञानावरणादि कर्मोका भी पूर्ववत् स्थितिकाण्डक व अनुभागकाण्डकघात करता है तथा अपकर्षित प्रदेशाग्रके असंख्यातवेभागकी गुणश्रेणी करता हुआ प्रथमसमयमे थोड़ा- द्रव्य देता है जिसका प्रमाण असख्यात समयबद्ध है, उससे ऊपर गुणश्रेणीशीर्ष पर्यन्त असंख्यात - गुणे क्रमसे द्रव्य दिया जाता है ।
सूक्ष्मसाम्पराय कृष्टियोमे से असंख्यातवेभागप्रमाण प्रदेशाग्रको अपकर्षणकरकेपुनः अपकवितद्रव्यके असख्यातबहुभागको पृथक् रखकर असंख्यातवेभागको गुणश्रेणीरूपसे देनेवाला उदयस्थिति में स्तोकद्रव्य देता है जो असंख्यात समय प्रबद्धप्रमाण है । उदयस्थितिके अनन्तर उपरितनस्थिति में उससे असंख्यातगुणे द्रव्यको देता है । उससे अनन्तरस्थित्तिमे असख्यातगुणे प्रदेशाग्र को देता है । इसप्रकार अन्तर उत्तरोत्तर स्थितियो मे मसख्यातगुणा-असख्यातगुणा प्रदेशाग्र मन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति में तबतक
१. जयववल मूल पृष्ठ २२०८ ॥
२.
० पा० सुत्त पृष्ठ ६६६ सूत्र १३०४-१३०७ । घवल पु० ६ पृष्ठ ४०३ ।