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क्षपरणासार
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[ गाथा १७०-७१
संज्वलनकषायोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम २० दिन और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्त कस १६ मास है' ।
"तदियगमाया चरिमे परणवासय दिवसमासाणि । दोराहं संजलाणं ठिदिबंधो तह य सत्तो य ॥ १७० ॥ ५६१ ॥ मासपुधत्तं वाला संखसहस्वाणि बंध सत्तो य ।
घादितिया दिराणं संखमसंखेज्जवस्त्राणि ॥ १७१ ॥ जुम्मं ।। ५६२ ।।
अर्थ-उसके अनन्तर मायाकी तृतीयसंग्रहकृष्टिका वेदक होता है, इसके अन्तिमसमयमे दो संज्वलनकषायोंका स्थितिबन्ध १५ दिन और स्थितिसत्त्व १२ मास प्रमाण होता है और वही तीच घातियाकर्मोंका स्थितिबन्ध पृथक्त्वमासप्रमाण है एवं स्थितिसत्त्व संख्यातहजारवर्षमात्र है । तथैव तीत अघातिया कर्मोका स्थितिबन्ध संख्यातवर्षप्रमाण व स्थितिसत्त्व असंख्यातवर्षप्रमाण है ।
विशेषार्थ -- मायाकषायकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिके वेदनके चरमसमयसे अनन्तरवर्तीसमय मे द्वितीयस्थति से मायाकी तृतीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र अपकर्षणकरके मायाकी तृतीय कृष्टिसम्बन्धी प्रथमस्थिति की जाती है और उसी विधीसे मायाकी तृतीय कृष्टिको वेदन करनेवालेकी प्रथमस्थिति एकसमयाधिक आवलि शेष रहनेतक सर्वकार्य करता हुआ चला जाता है । प्रथमस्थिति में एकसमयाधिक आवलिकाल शेष रहनेपर मायाकी जघन्यस्थितिउदीरणा होती है और चरमसमयका वेदक होता है, उससमय में माया व लोभ इन दोनो सज्वलनकषायोंका स्थितिबन्ध पूर्ण १५ दिन और स्थितिसत्त्व पूर्ण १२ मास (१ वर्ष ) प्रमाण होता है तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीच घातिया कर्मोका स्थितिबन्ध पृथक्त्वमास व स्थितिसत्त्व संख्यातहजारवर्ष होता है । नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीन अघातियाकर्मो का स्थितिबन्ध संख्यातवर्ष और स्थितिसत्त्व असंख्यातवर्ष है ।
१. जयधवल मूल पृष्ठ २१६२-२१९३ ।
२. इन दोनो गाथाओका विषय क० पा० सुत्त पृष्ठ ८६१ सूत्र १२१७ से १२२४ तक तथा धवल पु० ६ ४ ३६५ पर भी है ।
३. जयधवल मूल पृष्ठ २१६३ ।