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[ गाया १६०-१६२
'ताहे संजलणाणं बंधो तो मुहुत्तपरिहीणो । सत्तोविय दिसीदी चउमासम्भहिय परणवस्ता ।। १६० ।। ५५१ ।। वादितिया बंधो बासपुधत्तं तु सेसपयडीणं । वस्ताणं संखेज्जसहस्ताणि हवंति णियमेण ।। १६१ ।। ५५२ ।। घादितियाणं तत्तं संखलहस्सा णि होंति वस्ताणं । तिरहं वि अादी वस्ाणि असंखमेत्ताणि ।। १६२ ।। ५५३ ।।
क्षपणासार
अर्थ - वहां (कोकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिवेदक के चरमसमय में ) संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कस ८० दिन मात्र है और उनका स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम चारमासअधिक पांचवर्षप्रमाण है । तीनघातियाकर्सीका स्थितिबन्ध पृथक्त्ववर्षप्रमाण तथा शेष रहे अघातियाकसका स्थितिबन्ध वियमसे संख्यातहजारवर्षप्रमाण है । तीन घातियाकर्मोंका स्थितिसत्त्व संख्यातहजारवर्षप्रमाण है तथा (आयुबिना) तीन अघातियाकर्मोका स्थितिसत्त्व असंख्यातवर्षमात्र है ।
विशेषार्थ - क्रोध की प्रथमसंग्रहकृष्टि वेदकके चरमसमयमें संज्वलनचतुष्कका स्थितिवन्ध अन्तर्मुहूर्तकम १०० दिन होता था, वह यथाक्रम घटकर क्रोधकी द्वितीयसंग्रहकृप्टिवेदक के चरमसमय में अन्तर्मुहूर्तक्रम ८० दिन रह गया और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम आठमाहश्रविक छहवर्षसे यथाक्रम घटकर बन्तर्मुहूर्तकम चारमास अधिक पांचवर्ष रह गया । क्रोधको प्रथमसंग्रहकृप्टिवेदकके चरमसमय में ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातियाकर्मोका स्थितित्वध अन्तर्मुहूर्तक्रम १० वर्ष होता था जो यथाक्रम घटकर क्रोध की द्वितीयकृप्टिवेदकके चरमसमय में अन्तर्मुहूर्तकम वर्षपृथक्त्व रह जाता है । तीनसे अधिक और से कम यथायोग्य संख्याको पृथक्त्व कहते हैं । शेष अर्थात् नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीन अघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात -- हजारवर्षप्रमाण होता था वह अब भी संख्यातहजारवर्षमात्र ही है, किन्तु पहले से ही है । इसीप्रकार तीनघातिया कर्मो के विषय में स्थितिसत्त्व संख्यातहजारवर्षप्रमाण जानना ।
१. इन तीनो गाथासम्बन्धी विषय क० पा० सुत्त पृष्ठ ८५८ सूत्र ११७७ से ११८२ और धवल ५० ६ पृष्ठ ३६१-९२ पर भी है ।