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क्षपणासार
गथा ८४]
[८१ चौथे अपूर्वस्पर्शककी आदिवर्गणाका प्रमाण (१०५४४) ४२० है, मानसंज्वलन के पांचवें अपूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणाका प्रमाण (८४४५) ४२० है, मायासज्वलनके छठे अपूर्वस्पर्धाक की प्रथमवर्गणाका प्रमाण (७०४६) ४२० है । लोभकषायके सप्तम अपूर्वस्पर्धक की आदिवर्गणाका प्रमाण (६०४७) ४२० है । चारों कषायोंमें आदिवर्गणाका प्रमाण ४२० होनेसे सदृश हैं। इसीप्रकार इतना अध्वान ऊपर-ऊपर चढनेसे क्रोधादि चारों संज्वलनकषायोमें क्रमशः आठवें, दसवें, बारहवे और चौदहवें अपूर्वस्पर्धकोंकी आदिवर्गणाका प्रमाण ८४० होनेसे और क्रमशः बारहवें, १५वे, अठारहवें और २१वें अपूर्वस्पर्धकोकी आदिवर्गणाका प्रमाण १२६० होनेसे सदृश है । अपने-अपने खण्डप्रमाणका अपनीअपनी अपूर्वस्पर्धक शलाकामें भाग देने से समानलब्ध प्राप्त होता है । अङ्कसन्दृष्टि में जैसे १६, २०, २१, २८ = ४ प्राप्त होता है । प्रत्येक सज्वलनकषायके लब्धप्रमाण अपूर्वस्पर्धकोकी आदिवर्गणा परस्पर तुल्य होती हैं । जैसे अंकसन्दृष्टि मे संज्वलनक्रोधकषाय के चौथे, आठवें, बारहवें और सोलहवें इनचार अपूर्वस्पर्धकोंकी आदिवर्गणा; सज्वलनमानकषायके पाचवे, दसवे, पंद्रहवे और २०वे इनचार अपूर्वस्पर्धकोकी आदिवर्गणा; संज्वलनमायाकषायके छठे, बारहवे, अठारहवे और २४वे इनचार अपूर्वस्पर्धकोंकी आदिवर्गणा तथा सज्वलनलोभकषायके सातवें, चौदहवे, इक्कीसवे और अठाईसवें इनचार अपूर्वस्पर्धकोकी आदिवर्गणा, इसप्रकार चारों संज्वलन कषायसम्बन्धी चार आदिवगंणाए परस्परमे एक कषायकी आदिवर्गणा दूसरी कणयको आदिवर्गणाके तुल्य होती हैं । तुल्यता बताने के लिए अकसन्दृष्टिमे जैसे ४ सख्या प्राप्त होती है, अर्थसन्दृष्टिमें अनन्तकी संख्या प्राप्त होती है, क्योकि अपूर्वस्पर्धकशलाकाका प्रमाण अनन्त है । इसप्रकार मध्यके अनन्तअपूर्वस्पर्शकोकी आदिवर्गणा तुल्य होती है यह सिद्ध हो जाता है।
'ताहे दव्ववहारो पदेसगुणहाणि फड्ढयवहारो। पल्लस्स पढममूलं असंखगुणिदक्कमा होति ॥८४॥४७५।।
अर्थ-अश्वकर्णकरणके प्रथमसमयमें द्रव्यके अवहारसे प्रदेशगुणहानिस्पर्धकका अवहार असख्यातगुणा है, उससे पल्योपमका प्रथमवर्गमूल असंख्यातगुणा है ।
१. जयघवल मूल पृष्ठ २०३१ । २. क पा. सुत्त पृष्ठ ७६२ सूत्र ५१५ से ५१७ । ध० पु० ६ पृ० ३६६ । जयघ• मूल पृ० २०३२।