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गाथा ५० ] क्षपणासार
[ ४६ काण्डककी अन्तिम फालि है उसको सर्वसंक्रमणके द्वारा संक्रमाता है । इसप्रकार नपुंसकवेदको पुरुषवेदरूप परिणमाकर नाशको प्राप्त कराता है। ऐसा अर्थ स्त्रीवेदकी क्षपणा आदिमें भी लगाना चाहिए।
'बंधेण होदि उदो अहिओ उदएण संकमो अहिो । गुणसेडि असंखेज्जापदेसग्गेण बोधव्वा ॥५०॥४४१॥
अर्थः-बधसे उदय अधिक होता है और उदयसे संक्रम अधिक होता है । इसप्रकार प्रदेशाग्रकी अपेक्षा गुणश्रेणि असख्यातगुणी जानना चाहिए। (गुणकाररूपसे पंक्तिकी अपेक्षा गुणश्रेणिका प्रयोग हुआ है ।)
विशेषार्थः–'प्रदेश' शब्दसे परमाणुरूप द्रव्य जानना । यहां समयप्रबद्ध बधता है उसमें ७का भाग देतेपर मोहनीयकर्मको जो द्रव्य प्राप्त होता है उसमें कपाय व नोकषायरूप द्रव्यप्राप्तिके लिए पुनः दोका भाग देनेसे नोकषायरूप पुरुषवेदका जितना द्रव्य प्राप्त होता है उतने प्रमाण तो प्रदेशोंका बन्ध होता है तथा सर्वसत्तारूप पुरुषवेदसंबधी द्रव्य में गुणश्रेणी आदिके द्वारा दिये गये द्रव्यसहित इससमय उदय आने योग्य विषेकका द्रव्य असंख्यातसमयप्रबद्धप्रमाण है सो उतने प्रदेशोंका उदय होता है। ये प्रदेश बंधप्रदेशोको अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। सर्वद्रव्यको गुणसंक्रमणका भाग देनेसे जो प्रमाण आता है, उतने प्रदेशोंका सक्रमण होला है सो ये प्रदेश भी उदयप्रदेशोंकी अपेक्षा असख्यातगुणे हैं। इसप्रकार एक ही कालमे होनेवाले बन्ध, उदय व सक्रमणकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहने से गुण संक्रमणरूप द्रव्यका प्रमाण जाना जाता है।
जिन प्रकृतियोंका अधःप्रवृत्तसक्रमण होता है उनका भी संक्रमण द्रव्य असख्यातसमयप्रबद्धप्रमाण होनेसे उदयद्रव्यकी अपेक्षा असंख्यातगुणा है ।
शङ्काः-उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारसे अधःप्रवृत्तसंक्रमणभागहार असंख्यातगुणा है अतः अधःप्रवृत्तसंक्रमणद्रव्य उदयद्रव्यसे असंख्यातगुणा वहीं हो सकता।
___ समाधानः-अपकर्षित किया हुआ सभी द्रव्य गुणश्रेणिमे नही दिया जाता उसका असख्यातवांभागप्रमाण द्रव्य दिया जाता है अतः उदयद्रव्यसे संक्रमणद्रव्य असंख्यातगुणा है।
१. क. पा. सुत्त पृष्ठ ७६६ गा. १४४ के समान । घ० पु०६ पृ०३५६ । ज० ध० मूल पृ० १९६४। २. जयधवल मूल पृष्ठ १६६५ ।