________________
क्षपणासार--
गाथा७३
अन्यस्थितिबन्ध प्रारम्भ होता है। प्रत्येक स्थितिबन्ध में अन्तर्मुहूर्त स्थितिका - अपसरण होता है अतः अवेदके प्रथमसमय में अन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम १६ वर्षका होता है' । तीनघातियाकर्मोंका स्थिति बन्ध व सत्व.संख्यातहजारवर्ष है । , तीन अघातियाकर्मोका स्थितिबन्ध सख्यातहजारवर्ष और सत्त्व असंख्यातवर्ष है । 1 Fरससंतं 'आगहिदं खंडेण समं तु माणगे'कोहे। ... मायाए लोभेवि' य अहियकमा होति बंधेवि ॥७३॥६६४॥ -
अर्थ-अश्वकर्णकरणको प्रारम्भ करनेवालेने अनुभागखण्डके द्वारा अनुभागको घातकरनेके लिए जिस अनुभागसत्त्वको ग्रहण किया है वह अनुभागसत्त्व मान, क्रोध, माया और लोभमे विशेष अधिक क्रमसे हैं । अनुभागबन्धभी इसी क्रमसे होता है । -' ' विशेषार्थः-अश्वकर्णकरणको प्रारम्भ करनेवालेने जिस अनुभागसत्त्वमे से अनुभागखण्डनको ग्रहण किया है, उसकालमें (अवेदीके प्रथमसमयमे) उस अनुभागसत्त्वका यह अल्प बहुत्व है --अनुभागसत्त्व मानमे स्तोक, क्रोधमे विशेष अधिक, मायामें विशेषॲधिक और लोभमे विशेषअधिक है अर्थात् अनिवृत्तिकरण नामक वेंगुणस्थानके अवेदभागके प्रथमसमयमै जब अश्वकर्णकरणका प्रारम्भ होता है और अनुभागको घातकरने के लिए अनुभागकाण्डकको (आगहिंद) ग्रहण करता है उसके साथ रहनेवाला अनुभागसत्त्व इसप्रकार है---मानमें अनुभागसत्त्व स्तोक, 'उससे क्रोधका अनुभागसत्त्व विशेषअधिक, उससे मायाका अनुभागसत्त्व विशेष अधिक और उससे लोभका अनुभाग
१. "चरिमसमयसवेदस्स ठिदि वधो सजलाण संपुण्णसोलसवस्समेत्तो तम्मि चेव पज्जवसिदो । तदो । ' द्विदिवधे समत्ते पढमसमय अवेदो 'अण्ण ट्टिदिबंधमाढवेश्माणो सजलाणाणं पुविल्लढिदिवधादो * अतोमुहूत्तूण द्विदिवधमाढवेइ एत्तो पाए सजलणाण द्विदिवघोऽपसरणस अतोमृहुत्तपमाणत्तादो।"
का (जयधवल पु० १३ पृ. २८६-६०) २. क० पा० सुत्त पृष्ठ ७८८ सूत्र ४७६-४८० । ५० पु० ६ पृष्ठ ३६५ । जयघवल मूल पृष्ठ २०२३ । ३... "अणुभागसंतकम्म सह आगाइदेण. माणे थोवं ।।४७६।। क. पा. सुत्त पृष्ठ ७८८।" "अणुभागसत. कम्म आगइदेण सह माणे थोवं, कोहे विसेसाहियं, मायाए विसेसा हिय, लोभे विसेसाहिय"
(धवल पु० ६ पृष्ठ ३६५) ४. पवल पु० ६ पृष्ठ ३६५ टि०-नं० २ । जयधवल मूल पृष्ठ,२०२३ , ... ,