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राजचन्द्र और उनका संक्षिप्त परिचय
तू जिस स्थितिको भोगता है वह किस प्रमाणसे ? आगामी कालकी बात तू क्यों नहीं जान सकता ? तू जिसकी इच्छा करता है वह क्यों नहीं मिलता' चित्र-विचित्रताका क्या प्रयोजन है ? (९). मूलतत्त्वमें कहीं भी भेद नहीं, मात्र दृष्टिम भेद है, यह मानकर आशय समझ पवित्र धर्ममें प्रवर्तन करना (१४). तू किसी भी धर्मको मानता हो, उसका मुझे पक्षपात नहीं। मात्र कहनेका तात्पर्य यह है कि जिस राइसे संसार-मलका नाश हो उस भक्ति, उस धर्म और उस सदाचारको तू सेवन करना (१५). यदि तू सत्तामें मस्त हो तो नैपोलियन बोनापार्टको दोनों स्थितिसे स्मरण कर (३२). जिन्दगी छोटी है और लंबी जंजाल है। इसलिये जंजालको छोटी कर, तो सुखरूपसे जिन्दगी लम्बी मालूम होगी। (५१).
रामचन्द्रजीकी पाँचवी रचना मोक्षमाला है। यह बहुत प्रसिद्ध है। 'बालयुवकोंको अविवेकी विद्या प्राप्त कर आत्मसिद्धिसे भ्रष्ट होते देख, उन्हें स्वधर्ममें स्थित रखनेके लिये,' राजचन्द्रजीने मोक्षमाला बालावबोध नामक प्रथम भागकी रचना की है' । अन्यके उद्देशके विषयमें राजचन्द्र लिखते हैं:"भाषाशानकी पुस्तकोंकी तरह यह पुस्तक पठन करनेकी नहीं, परन्तु मनन करने की है। इससे इस भव और परभव दोनोंमें तुम्हारा हित होगा। जैनमार्गको समझानेका इसमें प्रयास किया है। इसमें जिनोक्त मार्गसे कुछ भी न्यूनाधिक नहीं कहा । जिससे वीतरागमार्गपर आबालवृद्धकी रुचि हो, उसका स्वरूप समझमें आवे, उसके बीजका हृदयमै रोपण हो, इस हेतुसे उसकी बालावबोधरूप योजना की है। इसमें जिनेश्वरके सुंदर मार्गसे बाहरका एक भी अधिक वचन रखनेका प्रयत्न नहीं किया । जैसा अनुभवमें आया और कालभेद देखा वैसे ही मध्यस्थतासे यह पुस्तक लिखी है।" मोक्षमालामें जैनधर्मके सिद्धांतोंका सरल और नूतन शैलीसे १०८ पाठोंमें रोचक वर्णन किया गया है । और बड़े आश्चर्यकी बात तो यह है कि राजचन्द्रजीने सोलह वर्ष पाँच महीनेकी अवस्थामें इसे कुल तीन दिनमें लिखा था।
ग्रंथके विषयको सामान्यतः नीचे लिखे चार विभागोंमें विभक्त किया जा सकता है:कथाभाग, जैनधर्मविषयकसिद्धांत, सर्वमान्यसिद्धांत और काव्यभाग । मोक्षमालाका कथाभाग बहुत रोचक और श्रेष्ठ है । यद्यपि ये कथाये बहुत करके उत्तराध्ययन आदि जैनसूत्र, तथा कथाग्रन्थों को अनुकरण करके लिखी गई हैं, परन्तु कथाओंके पढ़नेसे लगता है कि मानो ये कथायें मौलिक ही हैं। मोक्षमालाकी अनाथी मुनि, कपिल मुनि, भिखारीका खेद, सुखके विषयमें विचार आदि कथायें वैराग्यरससे खूब ही परिपूर्ण है, और ये कथायें इतनी आकर्षक और हृदयस्पर्शी हैं कि इन्हें जितनी बार भी पको उतनी ही बार ये नई और असरकारक मालूम होती हैं । हम तो समझते हैं कि मोक्षमालाकी बहुसंख्यक कथायें भारतीय कथा-साहित्यकी उच्च श्रेणी में जरूर रखी जा सकती हैं।
मोक्षमालाके दूसरे विभाग, सामायिक, प्रतिक्रमण, रात्रिभोजन, प्रत्याख्यान, जीवदया, नमस्कार मंत्र, धर्मध्यान, नवतस्व, ईश्वरकर्तृत्व आदि जैनधर्मके मुख्य मुख्य प्राथमिक सिद्धांतोंका नूतन शैलीसे सरल और गंभीर विवेचन किया गया है। उदाहरणके लिये रात्रिभोजनके विषयमें लिखा है:-" रात्रिभोजनका पुराण आदि मतोंमें भी सामान्य आचारके लिये त्याग किया है। फिर भी उनमें परंपराकी रूहिको लेकर रात्रिभोजन घुस गया है। शरीरके अन्दर दो प्रकारके कमल होते हैं। वे सूर्यके अस्तसे संकुचित हो जाते हैं । इस कारण रात्रिभोजनमें सूक्ष्म जीवोंका भक्षण होनेसे अहित होता है । यह महारोगका कारण है । ऐसा बहुतसे स्थलों में आयुर्वेदका भी मत है" (मोक्षमाला २८)। जो लोग प्रतिक्रमण आदिको, उसका अर्थ समझे बिना ही, कंठस्थ कर लेते हैं, ऐसे लोगोंके विषयमें राजचन्द्र लिखते हैं-" जिनके शास्त्रके शान कंठस्थ हो, ऐसे पुरुष बहुत मिल सकते है। परन्तु जिन्होंने थोडे वचनोंपर प्रौढ
और विवेकपूर्वक विचार कर शास्त्र जितना शान हृदयंगम किया हो, ऐसे पुरुष मिलने दुर्लभ है। तस्वको पहुँच जाना कोई छोटी बात नहीं, यह कूदकर समुद्रको उलाँघ जानेके समान हैं।"
राजचन्द्रजीने मोक्षमालाको बालावबोध, विवेचन और प्रशावबोध इन तीन भागोंमें लिखनेका विचार किया था। वे केवल बालावबोध मोक्षमाला ही लिख सके, अन्तके दो भागोंको नहीं लिख सके । प्रहावयोष मोक्षमालाकी वे केवल संकलनामात्र ही लिखवा सके । यह प्रस्तुत ग्रंथम ८६४(२)-७९८.३३ पर दी हुई है।