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अथ सूत्र पठनाधिकारः।
बोल १ पृष्ठ ४६९ से ४७१ तक श्रावकको भी शास्त्र पढ़नेका अधिकार है।
बोल दूसरा पृष्ठ ४७१ से ४७२ सक शास्त्र पढ़नेके चौदह अतिचार श्रावकोंके भी होते हैं यदि श्रावकको शास्त्र पढ़ने का अधिकार न होता तो उसको अकालमें स्वाध्याय करने और कालमें स्वाध्याय न करनेका अतिचार कैसे लगता।
बोल तीसरा पृष्ठ ४७२ से ४७३ तक नन्दी और समवायांग सूत्रमें साधु और श्रावक दोनोंको “सुयपरिग्गहिया" कहा है इस लिये साधुकी तरह श्रावकका भी सूत्र और अर्थ दोनों जानने का अधिकार है । उत्तराध्ययन सूत्रमें पालित नामक श्रावकको निनथ प्रवचनका पण्डित कहा है।
बोल चौथा पृष्ठ ४७३ ४७५ तक प्रश्न व्याकरण सूत्रके मूल पाठमें सत्य रूप महाव्रतकी प्रशंसा की गई है शास्त्र पढ़ने और पढ़ानेका कुछ जिक्र भी नहीं है।
..' बोल पांचवां पृष्ठ ४७६ से ४७७ तक व्यवहार सूत्रमें तीन वर्ष दीक्षा लेनेके पश्चात् निशोथ सूत्र पढ़नेका और दश वर्ष दीक्षा लेने के पश्चात् भगवती सूत्र पढ़नेका विधान किया है वह एकान्त नहीं है क्योंकि तीन वर्षकी प्रव्रज्या वाला साधु उत्कृष्ट द्वादशांगधारो भी कहा गया है।
___ बोल छट्ठा पृष्ठ ४७७ से ४७८ तक गुरुसे विना पढ़े अपने मनसे शास्त्र पढ़ने पर 'सुष्ट्वदिन्न नामक अतिचार होता है उसकी निवृत्ति के लिये श्रावक गुरु से पढ़ कर ही शास्त्रका अध्ययन करते हैं।
बोल सातवां पृष्ट ४७८ से ४७९ तक · ठाणांग ठाणा तीनका नाम लेकर सभी श्रावकों को अविनीत लोलुप और क्रोधी ठहरा कर शास्त्र पढ़नेका अनधिकारी बताना मूर्खता है।
___ बोल आठवां पृष्ठ ४७९ से ४८१ तक . . सूर्या प्रज्ञप्तिका नाम लेकर श्रावकको अभाजन कहना मिथ्या है।
वोल ९ वां पृष्ठ ४८१ से १८२ तक उसन्न पासस्थ और कुशील आदि श्रावक भी होते हैं साधु ही नहीं। इसलिये निशीथ सूत्र उद्देशा १९ के मूलपाठमें उसन्न पासत्थ और कुशील श्रावक और साधुको शास्त्र पढ़ानेका निषेथ है जो श्रावक उसन्न पासस्थ और कुशील नहीं है उसको शास्त्र पढ़नेका निषेध नहीं है।
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