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पुद्गल-कोश
• ०१३ संस्कृत में पुद्गल शब्द की व्युत्पत्ति
रूप - पुद्गल
लिंग –त्रिलिंग
धातु - V पूर्x V ग> पुद्गल ( व्युत्पत्ति अनियमित )
पूरणात् गलनात् इति पुद्गलाः परमाणवः ।
- विष्णुपुराण
पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः । "यथा भासं करोति भास्कर इति भासनार्थमन्तनय भास्कर संज्ञाऽन्वर्था प्रवर्तते तथा भेदात्, संघातात्, भेदसंघाताभ्यां च पूर्यन्ते गलन्ते चेति पूरणगलनात्मिकां क्रियां अंतर्भाव्य पुद्गलशब्दोऽन्वर्थः पृषोदरादिषु निपातितः, यथा 'शवशायनं श्मशानमिति ।"
- राज० अ ५ । सू १ । पृ० ४३४ पूरण होना अर्थात् मिलना, गलन होना अर्थात् अलग होना । जो मिलते हैं और जो अलग होते हैं उनकी संज्ञा - नामकरण पुद्गल है, जैसे 'भास' करने वाले को भास्कर कहा जाता है, उसी तरह जो भेद, संघात तथा भेदसंघात से पूरण और गलन को प्राप्त होता है वह पुद्गल है । पूरण तथा गलन क्रियाओं के संयोग से पुद्गल शब्द बनता है । यह शब्द 'शवशायनं - श्मशानं' की तरह पृषोदरादिगण में अनियमित रूप में निष्पन्न होता है ।
- शसा० पृ० ४५७
राजवार्तिककार ने दूसरी व्युत्पत्ति निम्न प्रकार से की है
'पुङ्गिलानाद्वा' अथवा, पुमांसो जीवाः, तैः शरीराहारविषयकरणोपकर
णादिभावेन गिल्यन्त इति पुद्गलाः ' ।
- राज० अ ५ । सु १ । पृ० ४३४ पुम्> पुरुष > जीव जिनको ग्रहण करे अर्थात् जीव जिनको शरीर, आहार, इन्द्रिय, उपकरणादि के रूप में ग्रहण करे वह पुद्गल ।
०२ पुद्गल शब्द के प्राकृत में पर्यायवाची शब्द
'पोग्गल' के अनेक पर्यायवाची शब्द होते हैं ।
पोग्गलत्थकायस्स णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तंजहा - पोग्गले ति वा, पोग्गलत्थिकाये ति वा, परमाणुपोग्गले ति
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