________________
३५२
पुद्गल-कोश परमाणुः पुनरप्रदेश इति न केनचिज्जन्यते, इति कथमसो सामग्रीजन्यः स्यात् ? अस्ति चासो, कार्यलिंगगम्यत्वात् उक्तं च
"मूर्तोऽणुरप्रदेश: कारणन्त्यं भवेत् तथा नित्यः ।
एकरस-वर्ण-गंधो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥ अथायमपि सप्रदेशः, तर्हेचतत्प्रदेशोऽणुभविष्यति, तस्यापि सप्रदेशत्वे तत्प्रदेशोऽणुरित्येवं तावत्, यावद् यत्र क्वचिद् निष्प्रदेशतया भवबुद्धरवस्थानं भविष्यति, स एव परमाणः, तेनापि च सामग्रीजन्यत्वस्य चभिचार इति।
सर्ववस्तु सामग्री-कारण समूह से जघन्य है - ऐसा एकान्त नियम नहीं है क्योंकि परमाणु पुद्गल अप्रदेशी होने के कारण किसी से भी जन्य नहीं है। अर्थात् द्विप्रदेशी आदि स्कंध सप्रदेशी होने के कारण परमाणु आदि सामग्री से जन्य है परन्तु परमाणु पुद्गल अप्रदेशी होने से किसी से भी जन्य नहीं है। कहा है-परमाणु पुद्गल मूर्त-अप्रदेशी होने के कारण सर्व का अन्य कारण है, नित्य है। अतः परमाणु पुद्गल-सामग्री जन्य नहीं है। .४६ परमाणु पुद्गल का ज्ञान
(क) दस ठाणाई छउमत्थे सबभावेणं न जाणइ न पासइ, तंजहा १ धम्मस्थिकायं, २ अधम्मत्थिकायं, ३ आगासाथिकायं, ४ जीव असरीरपडिबद्ध, ५ परमाणुपोग्गलं, ६ सई, ७ गंध, ८ वातं, ९ अयंजिणे भविस्सइ वा ण वा भविस्सइ, १० अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करेस्सइ वा न वा करेस्सइ।
एयाणि चेव उप्पन्न नाण-दसणधरे अरहाजिणे केवली सव्वभावे गं जाणइ, तंजहा धम्मत्थिकायं, जाव करेस्सइ वा न वा करेस्सइ।
-भग० श ८ । उ २ । सू १६ । पृ० ५४०
-ठाण• स्था १० । सू ७५४ । पृ. ३१० ठाण टीका-'दसे' त्यादि गतार्थ, नवरं छद्मस्थ इह निरतिशय एव द्रष्टव्योऽन्यथाऽवधिज्ञानी परमाण्वादि जानात्येव । 'सव्वभावेणं' ति सर्वप्रकारेण x xx।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org