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पुद्गल-कोश .९ दिशा को अपेक्षा पुद्गल का अल्पबहुत्व ... दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पोग्गला उड्ढदिसाए १, अहेदिसाए विसेसाहिया २, उत्तरपुरस्थिमेणं दाहिणपच्चस्थिमेणं य दो वि तुल्ला असंखेज्जगुणा ३, दाहिणपुरस्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं य दो वि तुल्ला विसेसाहिया ४, पुरस्थिमेणं असंखेज्जगुणा ५, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया ६, दाहिणेणं विसेसाहिया ७, उत्तरेणं विसेसाहिया ८ ।
-पण्ण० प ३ । सू ३२७
सबसे कम पुद्गल ऊंची दिशा में है, उनसे अधोदिशा में पुद्गल विशेषाधिक है, उनसे उत्तर पूर्व ( ईशानकुण ) तथा दक्षिण पश्चिम (नैत्रीत्यकुण) दिशा में (परस्पर तुल्य है) असंख्यातगुणे हैं, उनसे दक्षिण-पूर्व दिशा ( अग्निकुण ) तथा उत्तर-पश्चिम ( वायुकुण) दिशा के (परस्पर तुल्य है ) विशेषाधिक है, उनसे पूर्व दिशा में असंख्यातगुणे, उनसे पश्चिम दिशा में विशेषाधिक है, उनसे दक्षिण दिशा विशेषाधिक तथा उनसे उत्तर दिशा में पुद्गल विशेषाधिक है।
___ नोट --चार प्रदेशी ऊची दिशा निकली वह सात रज्जु न्यून होने से उर्व दिशा में पुद्गल कम है। चार प्रदेशी नौची दिशा निकली वह सात रज्ज अधिक है अतः नीची दिशा उस अपेक्षा से हैं। एक प्रदेशी श्रेणी ऊंची-नीची १४ रज्ज तक और तिरछी लोकांत तक गई है अतः ईशानकुण नैऋत्यकुण में इस अपेक्षा से हैं। गजदत्ता पर्वत पर सोमनस और गंधभादन एक-एक कूट कम होने से धूमस और धामस आदि सूक्ष्म पुद्गल अग्निकुण वायुकुण में इस अपेक्षा से है। पूर्व दिशा लम्बी-चौड़ी अधिक होने की अपेक्षा से पुद्गल अधिक है। पश्चिम दिशा में सलिलावती विजय हजार योजन ऊडी है अतः पुद्गल अधिक है। दक्षिण दिशा में भवनपतियों के भवन अधिक होने से पुद्गल अधिक है। उत्तर दिशा में मानसरोवर है अतः जल अधिक है। इस कारण सात बोल के जीव अधिक है -उनके कर्म, काय, योग, उपयोग
और लेश्या के पुद्गल अधिक है । .१० क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गल को अल्पबहुत्व
खेत्ताणुवाएणं सम्वत्थोवा पोग्गला तेल्लोके १, उड्डलोयतिरियलोए अणंतगुणा २, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया ३, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ४, उड्डलोए असंखेज्जगुणा ५, अहेलोए विसेसाहिया ६ ।
...... --पण्ण० प ३ । सू ३२६
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