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पुद्गल-कोश
६४७ - टीका–सरीर ति उत्पत्तिसमयादारम्य प्रतिक्षणमेव शीर्यत इति शरीरंxxx। कम्मए त्ति कम्मर्णो विकारः कामणं, सकलशरीरकारणमिति। उक्त च -कम्मविगारो कम्मणमट्टविहविचित्तकम्मनिष्फन्न । सवेसि सरीराणं कारणभूयं मुणेयव्वं ।
नरयिक जीवों के शरीर पांच वणं तथा पांच रस वाले होते हैं । १-पांच वर्ण-कृष्ण, नील, लोहित, पौत व शुक्ल । २-पांच रस-तिक्त, कटुक, कषाय, आम्ल तथा मधुर ।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दंडको-जीवों के शरीर पांच वर्ण तथा पांच रस वाले होते हैं।
जिसमें प्रतिक्षण जीर्ण-शीर्ण होता है-वह शरीर है ।
कर्म-समूह से निष्पन्न अथवा कर्म विकार को कार्मण शरीर कहते हैं। या सर्व शरीरों का कारणभूत है। स्कंध पुद्गल द्रव्य और चंचलता पुद्गल द्रव्ये अणवः संख्यातादयो भवन्ति चलिता हि ।
-गोजी० गा ५६३
पुद्गल द्रव्य में (स्कंध पुद्गल ) संख्यात, असंख्यात व अनंत परमाणु चलित होते रहते हैं।
पुद्गल उत्पाव-व्यय-प्रौव्य वाला है (१) उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् ।
-तत्त्व. अ५ । सू २९ (२) भगवानपि व्याजहार प्रश्नत्रयमात्रेण द्वादशाङ्ग प्रवचनार्थ सकलवस्तुसंग्राहित्वात् प्रथमतः किल गणधरेभ्यः-"उप्पणेतिवा विगमेति वा घुवेति वा।
-तत्त्व० अ ५ । सू ६ सिद्धसेन टीका
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