Book Title: Pudgal kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 763
________________ पुद्गल-कोश ६७१ लेखक ने अपने इस ग्रन्थ में शोधसार समाविष्ट कर शोधार्थी विद्वज्जनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है । यत्र-तत्र पेचीदे प्रश्नों को उठाकर उसका सोदाहरण व शास्त्र सम्मत समाधान भी किया गया है । - दामोदर शास्त्री, दिल्ली श्रीचन्द चोरड़िया के विशिष्ट ग्रन्थ 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' में शास्त्रीय दार्शनिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण प्रतिपादन हुआ है। जैन धर्म के तात्विक चिन्तन में रूचि रखनेवालों के लिए तो यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक और रसप्रद है हो किन्तु साम्प्रदायिक अनाग्रह और वैचारिक उदारता के इस युग में हर बौद्धिक और चिन्तनशील व्यक्ति के लिए इसका स्वाध्याय उपयोगी भी है । - मुनिश्री राकेशकुमार, कलकत्ता पुस्तक में नौ अध्याय है - विभिन्न दृष्टिकोणों से मिथ्यात्वी अपना आत्म विकास किस रूप में किस प्रकार कर सकता है - यह दर्शाया है । जैन सिद्धान्त के प्रमाणों के आधार पर इस विषय को स्पष्टतया पाठकों के समक्ष लेखक ने सरल सुबोध भाषा में रखा है । जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं । शास्त्रीय चर्चा को अभिनव रूप में प्रस्तुत करने में लेखक सफल हुए हैं ( बोर वाणी ) । - भँवरलाल जैन न्यायतीर्थ, जयपुर 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' पुस्तक में आलेखित पदार्थों के दर्शन से जैन दर्शन व जैनागमों की अर्जनों की तरफ उदात्त भावना और आदरशीलता प्रकट होती है । एवं जैन धर्म को अप्राप्त आत्माओं में कितने प्रमाण में आध्यात्मिक विकास हो सकता है - इत्यादिक विषयों का आलेखन बहुत सुन्दरता से जैनागमों के सूत्रपाठों से दिखाया गया है । इसलिए विद्वान् श्रीचन्द चोरड़िया का प्रयास बहुत प्रशंसनीय है और यह ग्रन्थ दर्शनीय है । राम सूरी ( डेलावाला ), कलकत्ता लेखक की यह कृति पाठकों का ध्यान एक नई दिशा की ओर खींचती है । शास्त्र मर्मज्ञ विद्वानों को विविध विषयों पर गहराई से चिन्तन करने की ओर प्रवृत्ति करने में यह पुस्तक सहायक बनेगी । -डा० नरेन्द्र भणावत, जयपुर प्रायः यह समझा जाता है कि मिथ्यात्वी व्यक्ति धर्माचरण का अधिकारी नहीं है और उसका आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता । भ्रान्ति का निरसन विद्वान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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