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पुद्गल-कोश _ 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास पुस्तक को पढ़कर हृदय गद्-गद हुआ। बड़े मनोयोग से चिन्तनपूर्वक पुस्तक लिखी है । मानो मैं एक उपन्यास पढ़ रहा हूँ।
-डॉ० राजाराम जैन "मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' पुस्तक पढ़कर यह अनुभूति हुई कि सद्क्रियाओं से मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास होता है। इसमें दो मत नहीं है।
-जिनेश मुनि
श्री चोरडियाजी ने इस विषय में जो परिश्रम किया है वह धन्यवाद के पात्र हैं। यह ग्रन्थ इसके पूर्व प्रकाशित लेश्या-कोश, क्रिया-कोश की कोटिका ही है। इन ग्रन्थों में श्री चोरडियाजी का सहकार था। हमें आशा है कि वे आगे भी इस कोटि के ग्रन्थ देते रहेंगे। विशेषता यह है कि आगामों में जितने भी अवतरण इस विषय में उपलब्ध थे - उनका संग्रह किया है। इतना ही नहीं आधुनिक काल के ग्रन्थों के भी अवतरण देकर ग्रन्थ को संशोधकों के लिए अत्यन्त उपादेय बनाया है- इनमें सन्देह नहीं है।
- दलसुख मालवणिया, अहमदाबाद
'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' यह पुस्तक अनेक विशिष्टताओं से युक्त हैं । एक मिथ्यात्वी भी सद्-अनुष्ठानिक क्रिया से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। साम्प्रदायिक मतभेदों की बातें या तो आई ही नहीं है अथवा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का समभाव से उल्लेख कर दिया गया है।
श्री चोरडियाजी ने विषय का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर और तलस्पर्शी ढंग से किया है। विद्वज्जन इसका मूल्यांकन करें। निःसन्देह दार्शनिक जगत के लिए चोरड़ियाजी की यह एक अप्रतिम देन है।
-Glory of India, facit ___ अनुमानतः लेखक ने इस ग्रन्थ को लिखने के लिए अनेकानेक ग्रन्थों का अवलोकन किया है। टीका-भाष्यों के सुन्दर संदर्भो से पुस्तक अतीव आकर्षक बनी है।
-मुनिश्री जशकरण, सुजानगढ़ विद्वान लेखक ने यह स्पष्ट करने का साधार प्रयत्न किया है कि मिथ्यात्वी का कब और किस प्रकार विकास हो सकता है। लेखक और प्रकाशक इतने सुन्दर ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए बधाई के पत्र हैं।
--डा० भागचन्द्र जैन, नागपुर
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