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पुद्गल-कोश
१ - योग कोश के इस ग्रन्थ को पूर्ण करने में स्व० मोहनलालजी बांठिया एवं श्रीचन्दजी चोरड़िया ने काफी अध्यवसाय एवं परिश्रम किया है तथा शोधार्थी विद्वानों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है ।
२ - योग कोश द्वितीय खण्ड एक महत्वपूर्ण कृति है ।
३ - योग कोश एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है ।
४ - यह एक महत्वपूर्ण प्रशंसनीय कृति है ।
जैनागमों के महोदधि के मंथन से मुझ जैसे स्वाध्याय प्रेमी व्यक्ति के लिए करता है ।
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- रतनलाल रामपुरिया
२६ जनवरी १९९८
- के० जी० गुप्ता, लाडनूं
- प्रो० सी० एन० मुखर्जी
- सोलंकी, सम्पादक तुलसी प्रज्ञा निकाले गने नवनीत के रूप में यह ग्रन्थ प्रेरक व पथदर्शक प्रकाशस्तभ का कार्य
- सोहनलाल कोठारी, बालोतरा
अपने सभी उल्लेख जैन
श्रीचन्द चोरड़िया द्वारा लिखी गई योग का विश्वकोश ( योग- कोश ) के पहले भाग का परिचय करवाते हुए बेहद हर्ष हो रहा है जो कि इस पण्डितोचित विश्व में जैनत्व के विभिन्न विश्वकोशों में अपने योगदान के लिए प्रख्यात हैं । श्री श्रीचन्द चोरड़िया ने अपने विद्याभिमान से इस पुस्तक को विभिन्न विभागों में विभाजित किया है । जैसा कि आमतौर पर पुस्तकालय विज्ञान में अनुसरण किया जाता है । चूंकि यह एक विश्वकोश है इसमें सभी उल्लेख जैन साहित्य में पाए जाने वाले हैं | इनके संग्रह का सबसे महत्वपूर्ण रूप यह है कि इन्होंने पुस्तकों के आधार पर किया गया ना की अपने काल्पनिक विचारों से । इन्होंने इस पुस्तक को सत्यता प्रदान की है । जो कोई भी इनके विश्वकोशों के कार्य से परिचित हैं वे जानते हैं कि इनकी विधि कितनी वैज्ञानिक व विभवयुक्त है । यह पुस्तक इस ओर भी संकेत करती है कि जैनत्व के किसी एक विषय पर किसी तरह शोध की जाए । आर० एल० विलियम की जैन योग ( लंदन १९६२ ) नामक पुस्तक जैन योग का अध्ययन करवाती है परन्तु श्रीचन्द चोरड़िया की पुस्तक जैन योग का विश्वकोश है एवं अवश्य ही उत्तरोक्त पूर्वरोक्त से ज्यादा गहन है ।
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