Book Title: Pudgal kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 761
________________ पुद्गल-कोश अलंकृत कर समृद्ध किया है। इसी शृङ्खला में सन् १९६९ ई० में "क्रिया कोश" प्रकाशित हुआ है, किन्तु इसके बाद क्या हुआ, यह अविदित है। लेश्या कोश के सम्पादक हैं-श्री मोहनलाल बांठिया और श्रीचन्द चोरडिया। -डा० नेमीचन्द जैन इसके सम्पादक श्री मोहन लाल बांठिया और श्रीचन्द चोरड़िया हैं और इसके प्रकाशन का ग्रन्थभार श्री बांठिया ने उठाया है, जो कलकत्ता से सन् १९६६ में प्रकाशित हुआ। वे दोनों विद्वान जैन दर्शन और साहित्य में संशोधक रहे हैं। सम्पादकों ने सम्पूर्ण जैन वांगमय को सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति के अनुरूप १०० वर्गों में विभक्त किया है और आवश्यकतानुसार उसे यत्रतत्र परिवर्तित भी किया। मूल मूल्यों में से अनेक विषयों के उपविषयों की भी सूची इसमें सन्निहित है। इसके सम्पादन में तीन बातों को आधार माना गया है- १. पाठों का मिलान, २. विषय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा, ३. हिन्दी अनुवाद मूल पाठ को स्पष्ट करने के लिए सम्पादकों ने टीकाकारों का भी आधार लिया है। इस संकलन का काम आगम ग्रन्थों तक ही सीमित रखा गया है । फिर भी सम्पादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के कार्य में नियुक्ति, चूणि, वृत्ति, भाष्य आदि टीकाओं का तथा सिद्धान्त ग्रन्थों का भी यथा स्थान उपयोग हुआ है। दिमम्बर ग्रन्थों का इसमें उल्लेख नहीं किया जा सका । सम्पादक ने दिगम्बर लेश्या कोश को पृथक् रूप से प्रकाशित करने का सुझाव दिया है। कोश निर्वाण में ४३ ग्रन्थों का उपयोग किया है। -डा. पुष्पलता जैन, नागपुर मिथ्यात्वी का आध्यत्मिक विकास पर प्राप्त समीक्षा विद्वान लेखक ने 'मिथ्यात्वी के आध्यात्मिक विकास' विषय पर शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। इसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं। –कस्तुरचंद ललवानी मनीषी लेखक ने 'मिथ्यात्वी के आध्यात्मिक विकास के सम्बन्ध में शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। -जबरमल भंडारी श्रीचंदजी चोरड़िया ने मिथ्यात्वी की शुद्ध क्रिया से जिज्ञासा के अन्तर्गत अनेक उद्धरणों से सिद्ध किया है। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। -सूरजमल सुराना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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