Book Title: Pudgal kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 764
________________ ६७२ पुद्गल-कोश लेखक ने सरल-सुबोध किन्तु विवेचनात्मक शैली में और अनेक शास्त्रीय प्रमाणों को पुष्टिपूर्वक किया है । - डा० ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ यह अपने विषय की अपूर्वकृति है । मनीषी लेखक ने लगभग दो सौ ग्रन्थों का गम्भीर परायण एवं आलोडन करके शास्त्रीय रूप में अपने विषय को प्रस्तुत किया है । परिभाषाओं और विशिष्ट शब्दों में आबद्ध तात्विक प्ररूपणाओं एवं परम्पराओं को उन्मुक्त भाव से समझने के लिए यह कृति अतीव मूल्यवान् है । ( श्रमण पत्रिका ) | - जमनालाल जैन, वाराणसी शास्त्र प्रमाणों से परिपूर्ण इस ग्रन्थ में विद्वान् लेखक ने नौ अध्यायों में प्रस्तुत विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है | — भँवरलाल नाहटा, कलकत्ता लेखक ने काफी विस्तार के साथ उक्त चर्चा को पुनः चिन्तन का आयाम दिया है । पुस्तक एक अच्छी चिन्तन सामग्री उपस्थित करती है । - पं० चन्द्रभूषणमणि त्रिपाठी, राजगृह आपकी पुस्तक मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास अत्यन्त खोजपूर्ण एवं मनोयोग से लिखी गई है । तदर्थं मेरा धन्यवाद स्वीकार करें। आपका प्रयत्न एवं श्रम श्लाधनीय है । - हरीन्द्रभूषण जैन ४ मई १९७८ अध्यक्ष - प्राकृत एवं जैनीज्म विभाग आल इन्डिया ओरियंटल कान्फ्र ेस प्रस्तुत पुस्तक गहरे चिन्तन से साथ लिखी गई है । चोरड़ियाजी का यह प्रयास सराहनीय है । मिथ्यात्व का आध्यात्मिक विकास एक अनुठी कृति है । Jain Education International -अगरचन्द नाहटा - मुनि महेन्द्रकुमार, प्रथम विकास अत्यन्त खोजपूर्ण एक आपकी पुस्तक मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक मनोयोग से लिखी गई है । आपका प्रयत्न एवं श्रम सराहनीय है । For Private & Personal Use Only - मांगीलाल लूणिया www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790