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पुद्गल-कोश
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जैन शास्त्रों के अनुसार वर्ण मात्र पांच प्रकार का होता है-नील, पीत, शुक्ल, कृष्ण और लोहित ।
रस पांच प्रकार का है-तिक्त, कटुक, आम्ल, मधुर और कषाय । गन्ध दो प्रकार का होता है-सुगन्ध और दुर्गन्ध ।
स्पर्श आठ प्रकार का होता है-मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । वर्ण
पंचवन्ना पन्नता, तंजहा-किण्हा नीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला।
-ठाण० स्था ५ । उ १ । सू ३ वर्ण पांच हैं-(१) कृष्ण, (२) नील, (३) रक्त, (४) पीत और (५) शुक्ल । पंचरसा पन्नत्ता, तंजहा-तित्ता जाब मधुरा।
-ठाण• स्था ५ । उ १ । सू ४ रस पांच हैं-(१) तोता, (२) कड़वा, (३) कर्षला, (४) खट्टा और (५) मोठा। पुद्गल में स्पर्शावि गुण स्पर्शादयः परमाणुषु स्कन्धेषु च परिणामजा एव भवन्ति ।
- तत्त्व. अ५ । सू २४ का भाष्य स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण-इन चारों का परिणमन सर्व पुद्गलों (चाहे परमाणु हो चाहे स्कंध हो) में होता है। (कपूरणगलणत्तणतो पुग्गलो-अनुद्वार चू० ।
-पृ० २२ (ख) द्रव्याद् गलन्ति–वियुज्यन्ते किञ्चित्त द्रव्यं स्वसंयोगतः पूरवन्ति-पुष्टं कुवन्ति पुद्गलाः ।
-प्रसाटी० प २८९
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