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पुद्गल-कोश
जिसमें पूरण-एकीभाव और गलन-पृथक्भाव होता है वह पुद्गल है, यह इसका शाब्दिक अर्थ है।
.१६-१९ पुद्गल के वर्ण-गंध-रस-स्पर्श के भेद
तत्र स्पर्शोऽष्टविधः कठिनोमृदुगूरुलघुः शीतउष्णः स्निग्धोरूक्षः इति । रसः पचविधः-तिक्तः कटुः कषायोऽम्लोमधुर इति। गन्धो द्विविधः-सुरभिरसुरभिश्च । वर्णः पचविधः कृष्णो नीलो लोहितः पीतः शुक्ल इति ।
-तत्त्व. अ ५ । सू २३ का भाष्य स्पर्श के आठ भेद-कठिन, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । रस के पांच भेद-तीखा, कड़वा, कषाय, खट्टा और मीठा । गंध के दो भेद ---सुगन्ध और दुर्गन्ध ।
वर्ण के पांच भेद-काला, नीला, लाल, पीला और सादा । पुद्गल परिणाम पोग्गलत्थिकाए पंच वणे, पंचरसे, दुगंधे, अटुफासे पण्णत्ते।
-भग० श १२ । उ ५ सू ११६ पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, स्वभाव वाला होता है अर्थात् पुद्गल पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध व आठ स्पर्श से युक्त होता है। नोल, पोत, शुक्ल, कृष्ण, लोहितभेदात् ।
- तत्त्वराज० अ ५ । सू २३ । १०
तिक्तः, कटुकाम्ल, मधुर, कषायारसप्रकारा।
-तत्त्वराज० अ ५ । सू २३ । ८ गन्ध सुरभिरसुरभिश्च।
- तत्त्वराज० अ ५ । सू २३ । १ मृदुः कठिन, गुरु, लघ, शीतोष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, स्पर्शभेदाः।
-तत्त्वराज• अ५ । सू २३ । ७
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