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पुद्गल-कोश
वह दो प्रकार की होती है-(१) उष्ण तेजोलेश्या (२) शीतल तेजोलेश्या उष्ण तेजोलेश्या ज्वाला-दाह पैदा करती है, भस्म करती है इसमें १६ जनपदों ( देशों) को घात-वध तथा भस्म करने की शक्ति होती है। और शीतल तेजोलेश्या से उत्पन्न ज्वाला दाहको प्रशान्त करने की शक्ति होती है। उसका उदाहरण निम्न प्रकार है
वैश्यायण बाल तपस्वी ने गोशालकको भस्म करने के लिये उष्ण तेजोलेश्या निक्षिप्त की थी। भगवान महावीर ने शीतल तेजोलेश्या छोड़कर उसका प्रतिघात किया। अर्थात् तेजोलेश्या दूसरों पर निक्षेप की जाती है। और फिर उसका घात भी होता है, तथा उसे फेंककर वापस खींचा भी जा सकता है ।
भगवती सूत्र में एक जगह आया है कि भगवान महावीर ने स्वयं श्रमण निग्रन्थों को बुलाकर कहा कि हे आर्यों। मंखलिपुत्र गोशालक ने मुझे वध करने के लिये अपने शरीर से जो तेजोलेश्या निकाली थी वह अंग बंग, आदि १६ देशों को, घात करने, वध करने, उच्छेद करने तथा भस्म करने में समर्थ थी इस तरह का कथन दिगम्बर जैन आगम से भिन्न ही नहीं किन्तु विपरीत भी है ।
यह सब भिन्नता वस मानता दोनों सम्प्रदायों के आगमों के युगपत् संकलन से ही ज्ञात हो सकती है।
'प्रस्तुत लेश्या कोश को प्रकाशन में लाने में सम्पादकों व प्रकाशकों का परिश्रम सब तरह से सराहनीय है। दिगम्बर जैन समाज के ग्रन्थमालाओं व ग्रन्थ प्रकाशकों व विद्वानों से अनुरोध है कि इस प्रकार षट्खण्डागम में आये सिद्धान्तों को उनमें मुख्य २ आवश्यक एक २ विषय का सुन्दरता से आधुनिक संपादन शैली के अनुसार संकलित कर प्रकाश में लाएं तो जिनवाणी का बहुत बड़ा प्रचार व प्रसार होगा। कारण षट्खण्डागम धवल ग्रन्थों के पढ़ने व स्वाध्याय करने वाले तो बहुत कम ही हैं। किन्तु इस तरह के प्रकाशनों से सब लाभ उठा सकेंगे।
यह कोश विद्वानों को बिना मूल्य देने का प्रकाशकजी का संकेत है अतः जिन्हें जैन सिद्धान्तों के जानने की व अध्ययन को रुचि हो उन्हें प्रकाशकजी से अवश्य मंगाना चाहिये। 'प्रत्येक ग्रन्थमाला व शास्त्र भण्डारों में इस कोश का रहना आवश्यक है। ग्रन्थ का संपादन ठीक तरह से हुआ है-और प्रकाशन, कागज आदि बहुत सुन्दर हैं-इसके लिये संपादक व प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
-महेन्द्रकुमार "महेश" शास्त्री
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