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पुद्गल-कोश
६६५ लेकिन इन लेश्याओं के अनेकानेक भेद-प्रभेद विस्तारपूर्वक इस कोश में मूल गाथाओं सहित बताये गये हैं।
जैन वांगमयका दशमलय वर्गीकरण जिसमें जैन दर्शन, दार्शनिक पृष्ठ भूमि, धर्म, समाज विज्ञान. भाषा विज्ञान, विज्ञान, प्रयुक्त विज्ञान कलामनोरंजन, क्रीड़ा, साहित्य और भूगोल जीवनी-इतिहास पर अलग-अलग भेद सहित विवेचन इसमे मिलता है। .०४ जीव परिणाम का वर्गीकरण भी बताया गया है ।
सारांश कि लेश्या परिणामों का विस्तृत विवेचन जानना हो तो यह ग्रन्थ उपयोगी है तथा विद्वानों के लिये तो यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी है। साईज व परिश्रम के सामने मूल्य १० रुपया अधिक नहीं है। प्रत्येक जन संस्था के लिये स्वाध्यायार्थ प्रकाशक से अवश्य मगावें।
-जेन मित्र
वीर सं० २४८५ पुस्तक में लेखक द्वय ने बड़ी विशदता और सफलता से जैन साहित्य में निहित लेश्या सम्बन्धी विभिन्न उल्लेखों का संचयन किया है। जो लेखक द्वय की ज्ञान साधना और जिज्ञासावृत्ति का बोध कराता है ।
प्रस्तुत पुस्तक की पाठ्य-सामग्री के संकलन में ३२ आगमों और तत्त्वार्थ सूत्र का सहारा लिया गया है और उनके तुलनात्मक रूप को व्यक्त करने के लिये कतिपय दूसरे ग्रन्थों के उद्धरण भी उपस्थित किये हैं। संक्षेप में यह पुस्तक ज्ञान पिपासुओं के लिये उपयोगी बन पड़ी है और इसका प्रकाशन जैन वांगमय के क्षेत्र में क्रमबद्ध एवं विषयानुक्रम विवेचना का सूत्रपात करता है ।
जैन दर्शन के मिद्धान्तों के चिन्तन-मनन की और विद्वानों की रुचि बढ़ रही है किन्तु मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में उसका क्रमबद्ध-विषयानुक्रम विवेचन उपलब्ध न होने से समझने में काफी समय और श्रम लगाना पड़ता है और उसके बाद भी पूरी जानकारी न मिलने से निरुत्साहित हो जाते हैं। इस कमी की पूर्ति में कोष काफी सहायक होगा।
कोष में लेश्या के भेद, प्रभेद, उपभेद आदि के विवेचन द्वारा विषय का सर्वाङ्ग विवरण देने के लिये लेखक द्वय के प्रयत्न बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक के लिये किये गये श्रम को देखते हुए मूल्य १०) रुपया काफी कम है और विद्वानों, विश्व विद्यालयो, ग्रन्थ भण्डारों आदि को अमूल्य भेट देने के लिये प्रकाशक का विचार सराहनीय है।
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