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पुद्गल-कोश ___ यह संसार का प्रथम या मूल नियम कहा जा सकता है। सभी द्रव्य, सहभावी गुणों से ध्रुव है, तथा क्रमभावी पर्यायों से उत्पादव्यय रूप है।
नोट- उनके घरेल वातावरण में तो परमाणुओं की चहल-पहल और उछल-पुछल करती रहती है। जैसे कि गोमटसार जीव काण्ड में बताया गया है-पुद्गल द्रव्य में संख्यात, असंख्यात, अनन्त परमाणु चलित होते रहते हैं।' पुद्गलों के चार गुण
पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण स्वभाववाला होता है। भगवती सूत्र में यही बात अधिक स्पष्टता से बताई गई है। वहां लिखा गया है-पुद्गल पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श से युक्त होता है। जैन शास्त्रों के अनुसार वर्ण मात्र पांच प्रकार का होता है-नील, पीत, शुक्ल, लोहित और कृष्ण । रस पांच प्रकार का है-तिक्त, कटुक, आम्ल, मधुर और कषाय । गंध दो प्रकार का होता होता हैं-सुगन्ध और दुर्गन्ध ।४ स्पर्श आठ प्रकार का होता है- मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष ।"
एक परमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श होते हैं। किन्तु किसी भी स्थूल द्रव्य में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श मिलेंगे। स्पर्शों की अपेक्षा से स्कन्धों के दो भेद हो जाते हैं-चतुः स्पर्शी स्कंध और आठ स्पर्शी स्कंध । सूक्ष्म ये सूक्ष्म पुद्गल जाति चतुः स्पर्शी स्कंधात्मक है, चतुः स्पर्शी पुद्गलों में चार स्पर्श-शीत-उष्ण-स्निग्ध-रूक्ष होते हैं। १. पुद्गलद्रव्ये अणवः संख्यातादयो भवन्ति चलिता हि ।
-गोजी• गा ५६३ २. पोग्गले पंचणे, पंचरसे, दुगंधे अट्ठफासे पन्नते।।
-भग० श १२ । उ ५ सू ११६ ३. तिक्त, कटुकाम्ल, मधुर, कषाया रस प्रकाराः।
-तत्त्वराज• अ ५ । सू २३ । ८ ४. गन्ध सुरभिरसुरभिश्च ।
-तत्त्वराज० ५ । सू २३ । ९ ५. मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीतोष्ण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्शभेदाः ।
-तत्त्वराज. अ ५ । सू २३ । ६
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