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पुद्गल-कोश .२ परिणामी-जीव-मुत्तं, सपदेस एय खेत्त-किरिया य ।
पिच्चं कारण-कत्ता, सव्वगवमिदरहि य पवेसे ॥१॥ दुण्णिय एवं एयं, पंच-त्तिय एय दुण्णि चउरो य । पंच य एवं एयं, एदेसं एय उत्तरं यं ॥युग्मम् ॥२॥
-बृहद् अधि २ । गा १, २
पूर्वोक्त षट द्रव्यों में से परिणामी द्रव्य जीव और पुद्गल ये दो हैं, चेतन द्रव्य एक जीव है, मूत्तिमान एक पुद्गल है।
प्रदेश सहित जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा आकाश-ये पांच द्रव्य हैं, एक संख्यावाले धर्म, अधर्म और आकाश-ये तीन द्रव्य हैं। क्षेत्रवान एक आकाश द्रव्य है। क्रिया सहित जीव और पुद्गल-ये दो द्रव्य है, नित्य द्रव्य-धर्म, अधर्म, आकाश और काल-ये चार हैं। कारण द्रव्य-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-ये पांच हैं। कर्ता द्रव्य एक जीव है। सर्वगत (सर्व में व्यापनेवाला) द्रव्य एक आकाश है और ये छः द्रव्य प्रवेशरहित हैं अर्थात् एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का प्रवेश नहीं होता।
टोका-परिणामपरिणामिनो जीवपुद्गलौ स्वभावविभावपर्यायाभ्यां कृत्वा शेषचत्वारि द्रव्याणि विभावव्यंजनपर्यायाभावान्मुख्यवृत्त्या पुनरपरिणामोनोति।
स्वभाव तथा विभाव पर्यायों के परिणाम से परिणामी जीव और पुदगल--ये दो द्रव्य है। और शेष चार द्रव्य अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल-ये चार द्रव्य विभाव व्यंजन पर्याय के अभाव से मुख्यता से अपरिणामी हैं ।
३. संठाणा संघादा वण्णरसफ्फासगंधसदा य। पोग्गलबव्वप्पभवा होंति गुणा पज्जया य बहू ॥
-पंच० गा १३४
समचतुरस्र आदि छः संस्थान, औदारिक आदि पांच शरीरों के मिलापरूप स्कंध, पांच वर्ण, पांच रस, आठ स्पर्श, दो गध तथा सात शब्द पुद्गल द्रव्य से उत्पन्न बहुत से गुण तथा अवस्था विशेष है।
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