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पुद्गल-कोश
(ग) विश्लेषः भेदः । स च पञ्चधा
१ – उत्करः – मुद्गशमीभेदवत्
-
२ - चूर्णः - गोधूमचूर्णवत्
३ - खण्ड: - लोहखण्डवत् ४- प्रतरः- - अभ्रपटलभेदवत् ५- अनुतटिका - तटाक रेखावत्
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- जैसिदी० प्र १ । सू १५ । टीका
पुद्गल परिणाम का - अजीव परिणाम के दश भेदों में एक परिणाम भेद परिणाम है ।
भेद का अर्थ है - विश्लेष | वह पांच प्रकार का होता है ।
१ - उत्कर - जैसे - मूंग की फली का टूटना ।
२ - चूर्ण - जैसे – गेहूँ आदि का आटा ।
३ –खण्ड–जैसे—लोहे के टुकड़े, घड़े के टुकड़े ।
४ – प्रतर -- जैसे - अभ्रक के दल |
५ - अनुतटिका - जैसे - तालाव की दरारें ।
भेद परिणाम पांच प्रकार का है
१
- खण्ड भेद - मिट्टी की दरार ।
२ - प्रतर भेद - जैसे - अभ्रपटल के प्रतर ।
३ – चूर्णं भेद – चूर्ण – जैसे—आटा ।
४ – अनुतट भेद —वांस या ईक्षु को छीलना ।
५ - उत्करिका भेद - काठ आदि का उत्किरण ।
तत्वार्थवार्तिक में इसके छः भेद निर्दिष्ट है । उसमें इन पांच के अतिरिक्त एक चूर्णिका को और माना है । चूर्ण और चूर्णिका का अर्थ इस प्रकार किया है ।
१ – चूर्ण – जौ, गेहूं आदि में होने वाली कणिका ।
२ - चूर्णिका - उड़द, मूंग आदि का आटा ।
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