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पुद्गल-कोश
चविहे वज्जे पण्णत्ते, तंजहा-तते, वितते, घणे, भुसिरे ।
वाद्य - जिनसे शब्द की उत्पत्ति होती है ।
- ठाण० स्था ४ । उ ४ । सू ६३८
चार प्रकार के हैं
१ - तत-वीणादि, २ - वितत - ढोल आदि, ३-धन- कांस्य ताल आदि और ४ - शुषिर, वांसुरी आदि ।
नोट - तंत्री युक्त वाद्य को तत कहते हैं । चर्म से आनद्ध वाद्यों को वितत कहा जाता है, कांस्य आदि धातुओं से निर्मित वाद्य घन कहलाते हैं । जाने वाले वाद्य - सुषिर है ।
फूक से बजाये
८ बन्ध परिणाम
सश्लेष:- बन्धः, अयमपि प्रायोगिकः सादिः वैत्रसिकस्तु सादिरनादिश्च । ० प्र २ । सू १५ टीका
— जैन सिदी ●
विभिन्न परमाणुओं के संश्लेष को वहां बन्ध कहा गया है । उस बन्ध के प्रमुख दो भेद हैं- प्रायोगिक और वैस्रसिक । प्रायोगिक बन्ध सादि और वैखसिक बन्ध सादि-अनादि दोनों प्रकार का होता है ।
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dafas बंध
( सिक: ) तद्यथा- स्निग्धरूक्षत्वगुणनिमित्तो विद्य दुल्काजलधारानीन्द्रधनुरादिविषयः ।
- सर्वा • अ ५ । सू २४
dar का अर्थ है - स्वाभाविक । जिस बन्ध में व्यक्ति विशेष प्रयत्न की अपेक्षा न रहती है । उसके दो प्रकार है-सादि वैतसिक और अनादि वैस्रसिक । सादि वैसिक बन्ध वह है जो बनता है, विगड़ता है और उसके बनने-बिगड़ने में किसी व्यक्ति विशेष की अपेक्षा नहीं रहती है । उसके उदाहरण है बादलों में चमकने वाली बिजली, उल्का, मेघ, इन्द्रधनुषादि । स्निग्ध और स्निग्धगुण वाले स्कंधों के संयोग से बिजली पैदा होती है ।
पुद्गल द्रव्य का जीव के साथ कर्म रूप में सम्बन्ध
जेम
तेल्लु कम्म- पोगलु
तेम
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सिहि - सिह परिणामहू ।
वि
सिमहु ॥
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