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पुद्गल-कोश अर्थात् आकृति को संस्थान कहते हैं। वह संस्थान दो प्रकार का होता हैइत्थंस्थ और अनिस्थंस्थ। नियत आकार वाले पुद्गल को इत्थंस्थ कहा जाता है । यद्यपि अकलंकदेव ने इन्हीं दो शब्दों को इत्थं और अनित्थं संज्ञा से अभिहित किया है। संस्थानपरिणायः परिमंडलवृत्तव्यस्र पतुरस्रायतभेदात् पंचविधः ।
-ठाण. स्था १० । सू ७१३ । टीका वृत्तव्यस्रचतुस्रायतनपरिमण्डलादित्थम् ।
---तत्त्वराज. अ५। सू २४ वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयतन, परिमंडल, आदि को इत्थंस्थ आकार कहते हैं।
इसके अतिरिक्त जो अनियत आकार है उन्हें अनित्थंस्थ कहा जाता है ( अनियताकारं अनित्थंस्थाम्-जैनसिदी० १ । १२ का टीका )। संस्थान के भेद
सत्त संठाणा, पन्नत्ता, तंजहा-दोहे रहस्से, बट्ट, तंसे, चउरसे पिहले परिमंडले।
-ठाण. स्था ७ । उ २ । सू ५४८ आकार विशेष को संस्थान कहते हैं। इसके सात भेद हैं-(१) दीर्घ, (२) ह्रस्व, (३) वृत्त, (४) यस्र, (५) चतुरस्र, (६) पृथुल और (७) परिमंडल ।
१-दीर्घ बहुत लम्बे संस्थान को दीर्घ संस्थान कहते हैं। २-ह्रस्व-दीर्घ संस्थान से विपरीत अर्थात् छोटे संस्थान को ह्रस्व कहते हैं ।
३-पृथुल-फैले हुए संस्थान को पृथुल संस्थान कहते हैं। शेष का अर्थ सरल है। संस्थान के भेद
कति भंते! संठाणा पण्णत्ता, गोयमा ! छ संठाणा पण्णत्ता-तं जहा१ परिमंडले, २ वट्ट, ३ तंसे, ४ चउरंसे, ५ आयते, ६ अणित्यंथे।
-भग० श २५ । उ ३ । सू ३३ संस्थान के छः प्रकार है -यथा-परिमंडल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र, आयत और अनित्थंत्थ ।
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