________________
पुद्गल - कोश
• २ अगुरुलघुपरिणाम
दसविधे अजीवपरिणामे xxx अगुरुलहुपरिणामे ।
- ठाण० स्था १० | सू ७१३
- पण्ण० पद १३ सू ४१८
ठाण० टोका- -न गुरुकमधोगमनस्वभावं न लघुकमूर्ध्वगमनस्वभावं यद्द्रव्यं तदगुरुकलघुकं अत्यन्तसूक्ष्मं भाषामनः कर्मद्रव्यादि तदेव परिणामः परिणामतद्वतोरभेदात् अगुरुलघुकपरिणामः एतद्ग्रहणे नंतद्विपक्षोऽपि गृहीतो द्रष्टव्यः, तत्र गुरुकं च विवक्षया लघुकंच विपक्षयैव यद् द्रव्यं तद्गुरुलघुकं औदारिकादि स्थूलतरमित्यर्थः, इदमुक्तस्वरूपं द्विविधं वस्तु निश्चयनयमतेन व्यवहारतस्तु चतुर्द्धा, तत्र गुरुकं - अधोगमनस्वभावं वज्रादि लघुकंऊध्वंग मनस्वभावं धूमादि गुरुलघुकं तिर्यग्गामि वायुज्योतिष्क विमानादि अगुरुलघुकं - आकाशादिति, आह च भाष्यकारः ।
निच्छयओ सव्वगुरू सव्वलहं वा न विज्जई दव्वं । बायरमिह गुरुलहुयं अगुरुलहु सेसयं वव्वं ॥१॥ गुरुयं लहुयं उभयं णोभयमिति वावहारियनयस्सा | बव्वं लेट्ठू १ दोवो २ वाऊ ३ बोमं ४ जहासंखं ॥२॥ इति निश्चयतः सर्वगुरु सर्बलघु वा द्रव्यं न । विद्यते बादर इह गुरुलघुकं शेषं द्रव्यमगुरुलघुकं ॥ अजीव परिणाम - पुद्गल परिणाम के दश भेदों में एक भेद अगुरुलघु परिणाम है | जिसका नोचे जाने का व ऊर्ध्व गमन करने का भी स्वभाव नहीं है - वह अगुरुलघु परिणाम है । वह सूक्ष्म है— भाषा, मन, कर्म द्रव्यादि अगुरुलघु परिणाम है । गुरुत्व व लघुत्व के विपरीत अगुरुलघु परिणाम है । निश्चयनय से दो प्रकार की वस्तु है - यथा - गुरुलघु और अगुरुलघु लेकिन व्यवहार से चार प्रकार की है ।
१ - गुरु — अधोगमन जिसका स्वभाव है - जैसे - वज्रादि ।
२ -- लघु — जिसका ऊर्ध्वगमन स्वभाव है- वह लघु है - जैसे – धूमादि । ३ – गुरुलघु - तिर्यग् गमन करने वाली वायु तथा ज्योतिष्क विमानादि ।
Jain Education International
६२९
४—अगुरुलघु — आकाशादि । (परमाणु आदि) भाष्यकार ने कहा है- निश्चयनय से बादर गुरुलघु है - शेष द्रव्य अगुरुलघु है । व्यवहार नय से चारों प्रकार के द्रव्य है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org