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पुद्गल-कोश
६३३ प्रदेश संख्या
परिमंडले णं भंते ! संठाणे कि संखेज्जपएसिए, असंखेज्जपएसिए, अणंतपएसिए ? गोयमा ! सिए संखेज्जपएसिए, सिए असंखेज्जपएसिए, सिए अणंतपएसिए। एवं जाव आयए।
-पण्ण ० प १० । सू ३६८ परिमंडल संस्थान कदाचित् संख्यातप्रदेशी, कदाचित असंख्यातप्रदेशी, कदाचित अनंतप्रदेशी है । इसी प्रकार वृत्त आदि चारों संस्थान के विषय में जानना चाहिए। संस्थान की संख्या द्रव्य की अपेक्षा प्रदेश की अपेक्षा
परिमंडला णं भंते ! संठाणा दवट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणता? गोयमा णो संखेज्जा, णो असंखेज्जा, अणंता।
वट्टाणं भंते ! संठाणा० ? एवं चेव, एवं जाव अणित्थंथा, एवं पएसट्ठयाए वि, एवं दव्वट्ठपएसट्टयाए वि ।
-भग० श २५ । उ ३ । सू ३४, ३५ परिमंडल संस्थान द्रव्यार्थ रूप से संख्यात नहीं है, असंख्यात नहीं है, अनंत है।
वृत्त संस्थान द्रव्यार्थ रूप से संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं है, अनंत हैं। इसी प्रकार त्यस्र, चतुरस्र, आयत तथा अनित्थंस्थ संस्थान के विषय में जानना चाहिए ।
इसी प्रकार संस्थान की पृच्छा में प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ रूप में जानना चाहिए । अर्थात् संख्यात व असंख्यात नहीं है, अनंत हैं।
नोट-आकार को संस्थान कहते हैं। यहाँ पुद्गल अजीव के छः संस्थान कहे गये हैं, यथा
१-परिमंडल-चूड़ी जैसा गोल आकार । २-वृत्त-कुम्भकार के चक्र जैसा गोल आकार । ३-व्यस्र --सिंघाड़े जैसा त्रिकोण आकार । ४-चतुरस्र-बाजोट जैसा चतुष्कोण आकार ।
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