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पुद्गल-कोश
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स्पर्श, रस, वर्ण, गन्ध, शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थौल्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत व आताप - ये पुद्गल द्रव्य के कार्य अर्थात् पर्याय हैं ।
नोट--स्पर्श-रस-वर्ण-गंध-ये चार पुद्गल के मूलभूत गुण है ।
नोट –— संस्थान इत्थंलक्षण और अनित्थंलक्षण के भेद से दो प्रकार का है । जिस आकार का वह इस तरह का - इस प्रकार से निर्देश किया जा सके वह इत्थंलक्षण संस्थान है । गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयत, परिमंडल इत्यादि संस्थानों के आकारों का निर्देश करना संभव है । इसलिये यह इत्थंलक्षण संस्थान है और मेधादि संस्थानों का इस प्रकार का है - यह बतलाना संभव नहीं अतः वह अनित्थं - लक्षण संस्थान है ।
छवि संठाणं बहु विहि देहेहि पूरदित्ति गलदित्ति पोग्गलो ।
पूरणगलन
वर्णगन्धरसस्पर्शः कुर्वन्ति स्कन्धवत्तस्माद् पुद्गलाः
यत् । परमाणवः ॥
च
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पूरणाद् गलनाच्च पुद्गलाः ।
स्पर्श रसगंधवर्णवान् पुद्गलः ।
— तत्त्व ० अ ५ । सू १ । सिद्ध टीका
-धवला ग्रन्थ
- हरिवंश पुराण सर्ग ७
- जैनसिदी ०
गलन - मिलन स्वभाव के कारण पदार्थ को पुद्गल बताया गया है । स्पर्श, रस, वर्णं, स्वभाव वाला द्रव्य - पुद्गल है ।
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० प्र १ । सू १४
परमाणु पुद्गल का संस्थान नहीं होता है क्योंकि वह नियम से आकाश के एक प्रदेश को अवगाहित कर रहता है । जब पुद्गल स्कंध आकाश के एक प्रदेश को अवगाहित कर रहता है तब भी उसका संस्थान नहीं होता है । जब पुदगल स्कंध आकाश के दो प्रदेश यावत् असंख्यात प्रवेश को अवगाहित कर रहता है तब पुद्गल का संस्थान बन जाता है ।
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