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९० पुद्गल रूपी है धर्माधर्माकाशानि पुद्गल वर्ज भरूपं
- ९१ पुद्गल और भाव
तु
उदयपरिणामिरूपं
पुद्गल-कोश
पुद्गलाः रूपिणः
धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल- - ये अजीव के पांच प्रकार है । जिसमें पुद्गल रूपी है बाकी चार अरूपी है ।
काल एव
पुद्गलाः
— प्रशमरति ० प्रक० ९ । गा २०७
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चाजीवा ।
प्रोक्ताः ॥
तु
सर्वभावानुगा
जीवा ।
- प्रशमरति ० प्रक० ९ । गा २०९ उत्तराधं
I
रूप अर्थात् पुद्गलास्तिकाय में उदय - परिणामी दो भाव होते हैं । जीव द्रव्य में सर्वभाव है ।
वह पुद्गलास्तिकाय जो दृश्य जगत् ।
जो दृश्यजगत् अणु व स्कंध रूप है वह पुद्गलास्तिकाय है । •९२ स्कंध पुद्गल व उपग्रह
- श्रासं ० पूर्वार्ध • गा ३०
कमशरीरमनोवाग्विचेष्टितोच्छ् वासदुःखसुखदा स्युः । जीवितमरणोपग्रहकराश्च संसारिणः स्कंधाः ॥२१७॥
- प्रशम० प्रक० ९ गा २१७
कर्म, शरीर, मन-वचन, काययोग, श्वासोच्छ्वास, दुःख, सुख, जीवतर (आयुष्य ) और मरण - इन संसारिक उपकार का कर्त्ता स्कंध पुद्गल है ।
- ९३ किस प्रकार के कर्म द्रव्य वर्गणा के पुद्गलों का भेदन होता है
नेरइया णं भंते ! कइविहा पोग्गला भिज्जंति ? गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति, तंजहा - अणू चेव बादरा
चेव ।
- भग० श १ । १ । सू १९ । पृ० ७
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