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पुद्गल-कोश भाव पाप अजीव पारिणामिक भाव है। छः द्रव्यों में पुद्गल है। नव पदार्थों में अजीव व पाप है। नय दृष्टि से बंध भी है। पुद्गल और पुण्य
समचे पुण्य ते कियो भाव है, इक परिणामिकथंहो। छ में पुदगल नव में त्रिण है, अजीव पुण्य ने बंधो॥ द्रव्य पुण्य ते उदै म आयो, भाव परिणामी भणियो। छ में पुद्गल नव में अजीव बंध, नय वचने पुण्य गिणियो॥ भाव पुण्य ते उदय आवियो, भाव एक परिणामी। छ में पुद्गल नव में अजीव पुण्य, नय वचने बंध धामी॥
-झीणीचर्चा ढाण १० । गा १७, १९, २१ समुच्चय की दृष्टि से पुण्य अजीव पारिणामिक भाव होता है। वह छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में इसका समवतार तीन पदार्थों-अजीव, पुण्य व बंध होता है।
__ द्रव्य पुण्य-जो उदयगत नहीं है। अजीव पारिणामिक भाव है। वह छः द्रव्य में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में उसका समवतार दो पदार्थों- अजीव तथा बंध में होता है।
भाव पुण्य-अजीव पारिणामिक भाव है। छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में अजीव व पुण्य है। नय दृष्टि से ( कार्य में कारण का उपचार होने से) बंध कहा जाता है। पुद्गल ११-समच पुद्गल किसो भाव है ? परिणामिक इक परखो।
छ द्रव्य मांही पुद्गल कहिये, नव में च्यार सुनिरखो॥ १२–नां सावध नां निरवद, उजल करणी लेखे ताह्यो।
असासतो ने कह्यो सासतो, द्रव्य भाव अपेक्षायो। १३-द्रव्य पुद्गले ते किसो भाव है ? परिणामिक संपेखो। ____ छ द्रव्य मांही पुद्गल कहिये, नव में अजीव छै एको।
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