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पुद्गल-कोश सद् द्रव्यमेव, परिणतिमावविशिष्टमविचलितस्वरूपं जानाति जिनेन्द्रः केवलौति । ( ननु यदि पर्याया वस्तुसन्तो न भवन्ति, तहि कथमविशिष्टेऽपि सुर्वणाविद्रव्ये कुण्डलाऽङ्ग लीयक-नू पुरादयो व्यपदेशाः प्रवर्तन्ते x x x। ___ जी द्रव्य जिसकाल में जिसभाव में परिणत होता है वह द्रव्य उस काल में उस पर्याय से अभिन्न होने से परिणतिमात्र विशिष्ट द्रव्य है।
जो घट-घट, इन्द्रधनुषादि द्रव्य जिस काल में श्वेतरक्तादि पर्याय रूप में परिणति को प्राप्त होते हैं उस समय में पर्याय से अभिन्न परिणति मात्र विशिष्ट अविचलित स्वरूप वाला ही द्रव्य है।
खन्धेसु दुप्पएसादिएसु अब्भेसु विज्जुमाईसु । णिप्फणगाणि दव्वाणि जाण तं वीससाकरणं ॥
-सूय० नि गा८ द्विप्रदेशादि स्कंधों तथा विद्य त से युक्त मेघों में जो द्रव्य निष्पन्न होते हैं उसे विस्रसाकरण जानना चाहिए । विस्रसा पुद्गल और वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-संस्थान
x x x तत्र यद् यद् प्रयोग-वित्रसाद्रव्यं कार्तृ यान् यान् कृष्ण-रक्तपोत-शुक्लत्वादीन् भावान् पर्यायान् परिणमति प्रतिपद्यते।
-विशेभा• गा २६६७ । टीका जो-जो द्रव्य श्वेत-रक्त-पीत आदि पर्याय रूप में परिणति को प्राप्त होता है वह द्रव्य-प्रयोग और विस्रसा रूप है । पुद्गल स्वभाव
सुरूवा पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति। दुरुवा पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति॥
-नाया० अ १। सू १२ सुरूप पुद्गल ( सुन्दर वस्तुए) कुरूपता में परिणत होते रहते हैं और असुन्दर वस्तुएं सुरूपता में।
१-दोय प्रदेशिक आदि दे, अनन्तप्रदेशिक खंध ।
तेह तणो कारण प्रमुख, परमाणु कथियंद ।।
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