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पुद्गल-कोश
६२१ २-परमाणु थी नीपजे, खंध सर्व जग मांय ।
तिण सू कारण · खंध नो, परमाणु कहिवाय । ३–जिस कारण ह्र खंध नो, परमाणु अवलोय । (पिण ) खंध नहीं कारण बणे, परमाणु रो जोय ॥
-झीणीचर्चा पृ० २५३ नोट-स्कंध परमाणु का कारण नहीं बनता, यह सापेक्ष कथन है। तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है-'भेदादणु' स्कंध के टूटने से परमाणु बनता है। किन्तु जमाचार्य ने परमाणु को मूल सत्ता की दृष्टि से कहा है कि स्कंध परमाणु का कारण नहीं बनता है।
४-जिम घट नो कारण कह्यो, माटी नो पिंड जोय ।
पिण घट जे मृत्पिड नो, कारण नहिं छ कोय ॥ ५-जिम पट नो कारण कह्यो, जेह तांतवा जोय । जिण पर जे तांतवा तणो, कारण नहिं छै कोय ॥
-झीणी चर्चा २५३ '८८ पुद्गल और पाप-पुण्य ,
समचे पाप ते किसो भाव है, परिणामीक कहो। छ में पुद्गल नव में त्रिण है, अजीव पाप अरुबंधो॥ द्रव्य पाप ने उदै न आयो, भाव परिणामी थापो। छ में पुद्गल नव में अजीव बंध, नयवच कहिये पापो॥ 'भाव पाप एक परिणामी है, छ में पुद्गल ताह्यो। नव में अजीव पाप कहीजे ताह्यो, नय वचने बंध कहायो॥
-झीणीचर्चा ढाल २ । गा २३, २५, २६ समुच्चय दृष्टि से अजीव परिणामिक भाव है। छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में अजीव, पाप तथा बंध है ।
द्रव्य पाप-अजीव पारिणामिक भाव है। छः द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य है। नव पदार्थों में अजीव तथा बंध है। नय दृष्टि से उसे पाप भी कहा जाता है ।
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