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पुद्गल-कोश '८४ स्कंध और नय. . १-निश्चय व्यवहार नय से अजीव आदि के वर्णादि ।
एवं एएणं अभिलावेणं लोहिया मंजिट्ठिया, पोतिया हालिद्दा, सुकिल्लए संखे, सुम्मिगंधे को?, दुग्भिगंधे मयगसरीरे, तित्तं निवे कड्या सुठो, कसाए कवि?, अंबा अंबिलिया, महुरे खण्ड, कक्खडे बइरे, मउए णवणीए, गरूए अए, लहुए अलुयपत्ते, सोए हिमे, उसिणे अगणिकाए, णिद्ध, तेल्ले।
-भग० श १८ । उ ६ । सू १.९
( वावहारियणयस्ल ) इन प्रकार इस अभिलाप द्वारा मजीठ लाल है, हल्दी पीली है, शंख श्वेत है, कुष्ठ ( पटवास कपड़े सुगंध देनेवाली पत्ती) सुगंधित है, मुर्दा ( मृतक शरीर ) दुर्गंधित है, नीम ( निम्ब) तिक्त ( कड़वा ) है। सूठ कडुय ( तीखा ) है, कविठ कसैला है, इमली खट्टी है, खांड ( शक्कर ) मधुर है, वज्र कर्कश ( कठोर ) है, नवनीत ( मक्खन ) मृदु ( कोमल ) है, लोह भारी है, उलुकपत्र (बोरडी का पत्ता) हल्का है, हिम ( वर्फ) ठण्डा है, अग्निकाय उष्ण है और तेल स्निग्ध (चिकना ) है। किन्तु निश्चयनय से इन सब में पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श है।
विवेचन-व्यावहारिकनय लोक व्यवहार का अनुसरण करता है। इसलिये जिस वस्तु का लोकप्रसिद्ध जो वर्णादि होते हैं। वह उसी को मानता है। शेष वर्णादि की वह अपेक्षा करता है। निश्चयनय वस्तु में जितने वर्णादि है उन सबको मानता है।
'८५ पुद्गलों का अवस्थान अनियम से होता है
.१ x x x कधं पुग्गलाणमणियमेण अवट्ठाणं? एग-बे-तिण्णि समयाई काऊण उक्कस्सैण मेरुपव्वदादिसु अणादि-अपज्जवसिदसरुपेण संट्टाणावट्ठाणुवलंभाxxx।
-षट् खण्ड १ । ९ । १ सू २७ । पु ६ । पृ० ४९
पुद्गलों का अवस्थान अनियत होता है। उनका अवस्थान एक-दो-तीन समय से लेकर उत्कर्षतः मेरूपर्वत आदि पुद्गलों में अनादि अनन्त स्वरूप एक ही आकार का अवस्थान पाया जाता है।
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